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गाथा परम विजय की
जीवन का हर दिन नया होता है। काल कभी पुराना होता ही नहीं है। जिसको बिल्कुल ताजा-फ्रेश या सद्यस्क कहते हैं, वह है काल। न पीछे न आगे, केवल वर्तमान का क्षण। वर्तमान का हर क्षण नया होता है पर एक जनवरी को नया दिन माना जाता है, चैत्र शुक्ला प्रतिपदा को नया दिन मान लिया जाता है। गुजरात में नया वर्ष लगता है दीपावली को। अलग-अलग संवत् चलते हैं, अलग-अलग वर्ष आते हैं और अलगअलग नया दिन आता है किंतु जो व्यक्ति समय का मूल्य आंकता है, उसके लिए सदा नया दिन है। जो समय का मूल्यांकन नहीं करता, उसके लिए नया दिन कभी उगता ही नहीं है, सूरज नया उगता ही नहीं है।
सबसे बड़ी बात है समय का मूल्यांकन। समय के मूल्यांकन का अर्थ है-आत्मा का मूल्यांकन। समय का एक अर्थ है काल। समय का एक अर्थ है आत्मा। आत्मा का मूल्यांकन करना बहुत कठिन बात है। मूल्यांकन भी यथार्थ होना चाहिए। न प्रशंसा और न निंदा। जहां प्रशंसा ज्यादा होती है और मिथ्यावाद आ जाता है वहां प्रशंसा भी अनर्थकर बन जाती है। ___भगवान महावीर ने बार-बार निषेध किया-प्रशंसा की इच्छा मत करो। यह निषेध क्यों किया? इसीलिए कि प्रशंसा भी कभी-कभी अनर्थकर बन जाती है। निंदा बुरी है तो प्रशंसा भी कुछ अर्थों में उससे कम बुरी नहीं है। वह बड़ा अनर्थ पैदा करती है। साधना है सम रहना। न निंदा, न प्रशंसा। न निंदा में हीनभावना, न प्रशंसा में उत्कर्ष की भावना। सम रहना सबसे बड़ी बात है। प्रशंसा में आदमी बह जाता है तो करने वाला, कराने वाला और सुनने वाला तीनों के लिए समस्या होती है। किंतु मनुष्य की मनोवृत्ति है कि वह प्रशंसा चाहता है।
पौराणिक कहानी है। एक मूर्तिकार इतना कुशल था कि उसने अपने जैसी पांच-सात मूर्तियां बना लीं। सोचा-जब यमराज आएगा तो किसको उठाकर ले जाएगा? पता ही नहीं चलेगा। आएगा, खाली हाथ लौट जाएगा। मूर्तियां व्यवस्थित रख दीं। उसे पता चला-मौत आने वाली है, यमराज आने वाला है। उन