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को अपना गाढ़ मित्र बना लो, प्रीति कर लो, आप शांति से जी सकेंगे। आपको कोई खतरा नहीं होगा।' व्योमगति ने मध्यस्थ का काम किया। जम्बूकुमार और व्योमगति में प्रगाढ़ मैत्री संबंध स्थापित किये।
युद्धस्थल में घोषणा की गई राजा मृगांक की विजय हो गई है। रत्नचूल पराजित हो गया है। ___ व्योमगति ने उदात्त स्वर में कहा-'यह जम्बूकुमार की विजय है। जम्बूकुमार जीत गया है और जम्बूकुमार के कारण हम भी जीत गये हैं। इस विजय का सारा श्रेय जम्बूकुमार को है।'
जयो लब्धः कुमारेण, जानुलंबितबाहुना। युद्धभूमि संस्तव की भूमि बन गई, प्रशंसा की भूमि बन गई। चारों तरफ जम्बूकुमार की जय-जयकार और प्रशंसा होने लगी। जम्बूकुमार बहुत रस नहीं ले रहा था क्योंकि वह जन्म से ही कोई विलक्षण व्यक्ति था। इतना अद्भुत बल, अद्भुत व्यक्तित्व किंतु इतना ही अंतरंग में अद्भुत अनासक्त और विरक्त। सरागता के समुद्र में जैसे कोई वीतरागता का द्वीप बन गया। मृगांक, व्योमगति और अन्य विद्याधरों ने जम्बूकुमार की भूरि-भूरि प्रशंसा की, गुणगान किया, उच्च आसन पर बिठाया। कार्य सम्पन्न हो गया।
व्योमगति ने कहा-'जम्बूकुमार! चलें अब केरला नगरी में।'
जम्बूकुमार ने कहा-'व्योमगति! अब मुझे यहां नहीं रहना है। जो काम करना था, मैंने कर दिया। अब मुझे वापस राजगृह जाना है, सम्राट् श्रेणिक और माता-पिता के पास जाना है, बहुत दिन हो गये, अब तुम तैयारी करो। मुझे वहां पहुंचा दो।' व्योमगति बोला-कुमार! पहुंचाने में कोई विलम्ब नहीं होगा, हम शीघ्र पहुंच जायेंगे। परन्तु एक बात ।
गाथा पर ध्यान दें। सम्राट श्रेणिक ने राजगृह से राजा मृगांक की सहायता के लिये सदल-बल प्रस्थान कर दिया । परम विजय की था। पहले यह पता लगाना चाहिए कि सम्राट श्रेणिक कहां पहुंचा है? इसलिए अभी तो आप विश्राम करें। आप बहुत थके हैं। काफी श्रम किया है, इतना भुजदण्ड का प्रयोग किया है। आप थोड़ा विश्राम करें।' ___ जम्बूकुमार ने कहा-जैसी तुम्हारी इच्छा। पर मुझे कोई थकान नहीं है। न कोई आराम करने की जरूरत है। तुम एक काम करो, पता लगाओ कि सम्राट श्रेणिक कहां पहुंचे हैं?' ___ एक ओर सम्राट श्रेणिक की खोज का उपक्रम शुरू हो रहा है तो दूसरी ओर यह प्रश्न उभर रहा है बंदी रत्नचूल का क्या होगा? क्या उसके बंधन टूटेंगे? क्या वह मुक्त गगन में शांति का उच्छ्वास ले सकेगा?