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मूर्तियों के बीच एक मूर्ति और बैठ गई। यमराज आया, देखा, सचमुच संशय में पड़ गया-किसको उठाऊं? सब समान हैं, ले जाऊं किसको? कुछ समझ नहीं सका, उलझ गया। आखिर एक उपाय खोजा, युक्ति ढूंढी-आदमी की कमजोरी है प्रशंसा सुनना। यह सबसे बड़ी दुर्बलता है।
यमराज बोला-'कितना कमाल का कलाकार है। कैसी बढ़िया मूर्तियां बनाई हैं? हर मूर्ति सजीव लगती है। पता ही नहीं चलता कि कौन जीवित है, कौन केवल मूर्ति है? दुर्लभ है ऐसा कलाकार।' पांचसात शब्द ऐसे प्रशंसा में कहे कि कलाकार उनमें उलझ गया। वह भूल गया यमराज को, मौत को। बोल उठा-'यह क्या देखते हो? इससे बढ़िया बना सकता हूं?'
'मैं तुम्हें ही खोज रहा था। आ जाओ।' प्रशंसा से यमराज का काम सरल हो गया।
भोजनोपरान्त विश्राम के बाद राजसभा जुड़ी। सर्वत्र विजय का उल्लास था। व्योमगति, मृगांक और जम्बूकुमार राजसभा में बैठे हैं। पास में रत्नचूल बंदी बना बैठा है। लोग जुड़ते हैं तो बातचीत स्वाभाविक है। सौ-पचास आदमी एक साथ बैठे और सब मौन रहें-संभव नहीं है। कोई चर्चा शुरू हो जाती है। व्योमगति खड़ा हुआ, बोला-'महाराज मृगांक! इस परिषद् में बहुत सभासद बैठे हैं। मैं सबके सामने एक सचाई प्रकट करना चाहता हूं।'
राजा मृगांक ने कहा-'क्या सचाई प्रस्तुत करना चाहते हो?'
व्योमगति ने जम्बूकुमार की ओर उन्मुख होते हुए कहा-जम्बूकुमार! आपने हमें विजय उपलब्ध करा दी। आपके कारण हम जीते। इसमें कोई संदेह नहीं है कि आपने पौरुष दिखाया किंतु इस अवधि में राजा मृगांक ने भी अपने पौरुष का प्रदर्शन किया है। बड़ा अच्छा पौरुष दिखाया है।'
रत्नचूल, जो बंदी बना बैठा था, मौन नहीं रह सका, बोला-व्योमगति! कितना झूठ बोलते हो! कोरे नमक की रोटी सेक रहे हो, थोड़ा बहुत आटा भी डालो। तुम कहते हो-मृगांक ने अपना पौरुष दिखाया। यह कितनी मिथ्या बात है। इतना बड़ा झूठ तुम मेरे सामने बोल रहे हो!'
रत्नचूल बंदी था पर उसका आवेश बंदी नहीं था। शरीर तो बंदी बन गया, पर आवेश कभी बंदी नहीं होता। भयंकर क्रोध में आ गया। आंखें रक्तिम हो गईं, लाल डोरे पड़ गये, भृकुटि तन गई।
रत्नचूल बोला-इतना बड़ा झूठ मत बोलो। मैं हार गया, उसका मुझे इतना दुःख नहीं है। किंतु तुम मिथ्या अहंकार का प्रदर्शन करते हो, उसका मुझे बहुत दुःख हो रहा है।'
___न तत् पराजयान्नूनं, दुःखमाप खगाधिपः।
यन्मृषाहंकृतस्तत्र, मृगांकबलशंसनात्।। रत्नचूल दृष्टांत की भाषा में बोला-व्योमगति! एक बात सुनो। एक आदमी दूसरे आदमी से बोलाआज तो बाजार में एक बरात देखी थी। पूछा-किसकी? उत्तर मिला-बांझ के बेटे की। उसके सिर पर मैंने बढ़िया सेहरा भी देखा। वह सेहरा किससे बना हुआ था? आकाश कुसुम से बना हुआ था। ____ व्योमगति! न तो आकाश के फूल होता और न सेहरा बनता, न बांझ के बेटा होता और न उसकी बरात होती। ऐसी झूठ बात तुम मत बोलो। यह ठीक नहीं है और मैं इस बात को सहन नहीं करता।'
गाथा परम विजय की