________________
ज्ञान को [ हि ] ही [ मुणिणो ] मुनिजन [ जेटुं] श्रेष्ठ [ वदंति ] कहते हैं। [ णाणं ] ज्ञान का [ आज्ज ] आश्रय करके [ कलुसस्स ] कलुषता की [ णूणो] कमी होती है [ दु] इसलिए [ भव्वो ] वह भव्य जीव [णाणस्स] ज्ञान के [ उवजोगजुत्तो] उपयोग से युक्त है। भावार्थ : ज्ञान की ही विशेषता है कि इस ज्ञान में सभी ज्ञेय पदार्थ स्वयं आकर ज्ञान का विषय बन जाते हैं, इसलिए मुनिजन सभी पदार्थों में ज्ञान को ही श्रेष्ठ कहते हैं। इस ज्ञान का आश्रय लेकर मुनियों की आत्मा में कलुषता की हानि होती है। इसलिए भव्य जीव निरन्तर ज्ञानोपयोग में लीन रहता है।