________________
30
ઉપદેશમાળા સૂક્ત- રત્ન- મંજૂષા ७२ सुट्ठ वि उज्जममाणं, पंचेव करिति रित्तयं समणं ।
अप्पथुई परनिंदा, जिब्भोवत्था कसाया य ॥४४॥ परपरिवायमईओ, दूसई वयणेहिं जेहिं परं ।
ते ते पावइ दोसे, परपरिवाई इय अपिच्छो ॥४५॥ ७१ जइ ता जणसंववहार-वज्जियमकज्जमायरइ अन्नो ।
जो तं पुणो विकत्थइ, परस्स वसणेण सो दुहिओ ॥४६॥ ६८ अइसुट्ठिओ त्ति गुणसमुइओ त्ति, जो न सहइ जइपसंसं ।
सो परिहाइ परभवे, जहा महापीढ-पीढरिसी ॥४७॥ ४१४ अप्पागमो किलिस्सइ, जइ वि करेइ अइदुक्करं तु तवं ।
सुंदरबुद्धीइ कयं, बहुयं पि न सुंदरं होई ॥४८॥ ४१५ अपरिच्छियसुयनिहसस्स, केवलमभिन्नसुत्तचारिस्स ।
सव्वुज्जमेण वि कयं, अन्नाणतवे बहुं पडइ ॥४९॥ ४२४ नाणाहियस्स नाणं, पुज्जइ नाणा पवत्तए चरणं ।
जस्स पुण दुण्ह इक्कं पि, नत्थि तस्स पुज्जए काई ? ॥५०॥ ३४८ हीणस्स वि सुद्धपरूवगस्स, नाणाहियस्स कायव्वं ।
जणचित्तग्गहणत्थं, करिति लिंगावसेसे वि ॥५१॥ २९६ जुगमित्तंतरदिट्ठी, पयं पयं चक्खुणा विसोहिंतो ।
अव्वक्खित्ताउत्तो, इरियासमिओ मुणी होई ॥५२॥ २९७ कज्जे भासइ भासं, अणवज्जमकारणे न भासद य ।
विगहविसुत्तियपरिवज्जिओ अ, जई भासणासमिओ ॥५३॥ २९८ बायालमेसणाओ, भोयणदोसे य पंच सोहेइ ।
सो एसणाइ समिओ, आजीवी अन्नहा होइ ॥५४॥