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________________ अतिशयक्षेत्र बटेश्वर शौरीपुर के वैभवककाल में 3 किमी. दूर बटेश्वर उपनगर था। कहा जाता है कि जब शौरीपुर नदी के तट से अधिक कटने लगा और बीहड़ हो गया तो भट्टारक जिनेन्द्रभूषण ने वि.सं. 1939. में यमुना की धार के मध्य मन्दिर बनवाया। भट्टारक जिनेन्द्रभूषण सिद्धपुरुष और मन्त्रवेत्ता थे। इस मन्दिर में चन्देल राजा परमर्दिदेव (परिमाल) के विख्यात सेनानी आल्हा-उदल के पिता जल्हण द्वारा बैसाख वदी 7 संवत् 1224 (ई. 1176) में प्रतिष्ठापित तीर्थङ्कर अजितनाथ की सुन्दर मूर्ति है। यह मूर्ति प्रभावशाली है। क्षेत्र का भूगर्भ पुरातत्त्व सामग्री से सजा है। यहाँ उत्खनन में प्राचीन प्रतिमाएँ प्राप्त होती हैं। सौ वर्ष पूर्व कार्लाइल द्वारा उत्खनन कराये जाने पर अनेक मूर्तियाँ महाभारतकालीन ईटें व अन्य सामग्री मिली। शौरीपुर उत्तरप्रदेश के आगरा जिले में स्थित है। उत्तर रेलवे की आगरा-कानपुर लाइन पर शिकोहाबाद जंक्शन है। यहाँ से 25 किलोमीटर पर शौरीपुर है। आगरा से दक्षिण-पूर्व की और बाह तहसील में 70 किलोमीटर की दूरी पर बटेश्वर उपनगर है। यहाँ से 5 किमी. दूर यमुना नदी के खारों में फैले हुए खण्डहरों में शौरीपुर क्षेत्र स्थित है। आगरा से बटेश्वर तक पक्की सड़क है और बस सेवा उपलब्ध है। यह शौरीपुर क्षेत्र मूलतः दिगम्बर जैन- तीर्थ है। तीर्थकर नेमिनाथ की निर्वाणभूमि गिरनारजी (गुजरात) का इतिहास __ गिरनार पर्वत सुप्रसिद्ध तीर्थक्षेत्र है। यह गुजरात राज्य के सौराष्ट्र प्रान्त में स्थित है। गिरनार क्षेत्र पर जैनधर्म के बाईसवें तीर्थङ्कर अरिष्टनेमि (नेमिनाथ) के तीन कल्याणक- दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण हुए थे। षट्खण्डागम सिद्धान्तशास्त्र की आचार्य वीरसेनकृत धवला टीका में इसे क्षेत्र मंगल माना है। जहाँ किसी तीर्थङ्कर के तीन कल्याणक हुए हो वह क्षेत्र वस्तुत: अत्यन्त पवित्र बन जाता है। अत: गिरनार क्षेत्र अत्यन्त पावन तीर्थभूमि है। इनके अतिरिक्त यहाँ से प्रद्युम्नकुमार, शुम्बुकुमार, अनिरुद्धकुमार, वरदत्तादि बहत्तर करोड़ सात सौ मुनियों ने मुक्ति प्राप्त की। अत: यह क्षेत्र वस्तुत: अत्यधिक पवित्र बन गया। इसलिए गिरनार (ऊय॑न्त) पावन तीर्थक्षेत्र होने के नाते इसे तीर्थराज भी कहा जाता है। “तिलोयपण्णत्ति' शास्त्र में भगवान् के निर्वाण नेमिनाथ की दीक्षा के सम्बन्ध में ज्ञातव्य बातें इस प्रकार दी हैं - चेत्तासु सुद्धसट्ठी अवरण्हे सावणम्मि णेमी जिणो। तदियखवणम्मि गिण्हत्य सहकारं वणम्मि तव चरणं।।४। 665 अर्थात् भगवान् नेमिनाथ ने श्रावण शुक्ला षष्ठी को चित्रा नक्षत्र के रहते सहकार वन में तृतीय भक्त के साथ ग्रहण किया अर्थात् दीक्षा ली। भगवान् नेमिनाथ के केवलज्ञान की प्राप्ति के सम्बन्ध में विशेष ज्ञातव्य तथ्यों पर प्रकाश डालते हुए "तिलोयपण्णत्ति" शास्त्र में इस प्रकार विवरण दिया है - अस्सऊज सुक्क पडिवदपुव्वण्णे ऊज्जयंतगिरिसिहरे। चित्ते रिक्खे जादं णेमिस्स य केवलं णाणं / / 4 / 666 - घ2
SR No.032866
Book TitleJain Vidya Ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain
PublisherGommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
Publication Year2006
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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