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________________ अर्थात् नेमिनाथ भगवान् को आसोज शुक्ला प्रतिपदा के पूर्वाह्न समय में चित्रा नक्षत्र के रहते ऊर्जयन्त गिरि के शिखर पर केवलज्ञान उत्पन्न हुआ “तिलोयपण्णत्ति' शास्त्र में भगवान् के निर्वाण की तिथि आदि का उल्लेख इस प्रकार उपलब्ध होता है बहुलट्टमीपदोसे आसाढे जम्ममम्मि ऊजंते। छत्तीसाधिवपणसयसहिदो णेमीसरो सिद्धो।।४।।१२०६ अर्थात् भगवान् नेमीश्वर आषाढ़ कृष्णा के दिन प्रदोषकाल में अपने जन्म नक्षत्र के रहते 536 मुनियों के साथ ऊर्जयन्त गिरि से सिद्ध हुए। इस क्षेत्र पर भगवान् नेमिनाथ के अतिरिक्त करोड़ों मुनियों को निर्वाण प्राप्त हुआ है, इस प्रकार के उल्लेख जैन वाङ्मय में प्रचुरता से प्राप्त होते है। “प्राकृत निर्वाणकाण्ड" में ऊर्जयन्त पर्वत से बहत्तर कोटि सात सौ मुनियों के निर्वाण-गमन का उल्लेख किया गया है। वह गाथा इस प्रकार है णेमिसामी पज्जुण्णो संवुकुमारो तहेव अणिरुखो। वाहत्तिरि कोडीओ ऊज्जंते सत्तसया सिद्धा।।५।। अर्थात् नेमिनाथ भगवान् के अतिरिक्त प्रद्युम्न, शम्बुकुमार, अनिरुद्धकुमार आदि बहत्तर करोड़ सात सौ मुनियों ने ऊर्जयन्त गिरि से सिद्धपद प्राप्त किया। यहाँ स्मरण रखना चाहिए कि परम्परया ऐसी मान्यता चली आ रही है कि प्राकृत निर्वाण-काण्ड आचार्य कुन्दकुन्द द्वारा विरचित है जिसका समय काल ईस्वी सन् 120 से 175 माना जाता है। इस प्रकार यह स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं हो सकती कि ऊर्जयन्त गिरि (गिरनार) से न केवल नेमिनाथ भगवान् ही मुक्त हुए हैं, अपितु वहाँ से अन्य भी अनेक मुनि मुक्त हुए हैं। उसका समर्थन हरिवंशपुराण से भी होता है। उस सम्बन्ध में आचार्य जिनसेन ने मुनियों के कुछ नाम देकर यह भी सूचित किया है कि इन मुनियों आदि के निर्वाण के कारण ही ऊर्जयन्त को निर्वाण-क्षेत्र माना जाने लगा और अनेक भव्यजन तीर्थयात्रा के लिए आने लगे। वे लिखते हैं - दशार्हादयो मुनयः षट्सहोदरसंयुताः। सिद्धि प्राप्तास्थान्येऽपि शम्बप्रधुम्नपूर्वकाः॥ ऊर्जयन्तादिनिर्वाणस्थानानि भुवने ततः। तीर्थयात्रागतानेकभव्यसेव्यानि रेजिरे॥ - हरिवंशपुराण, सर्ग 65, श्लोक 16-17 अर्थात् समुद्रविजय आदि नौ भाई, देवकी के युगलिया छह पुत्र, शम्बु और प्रद्युम्नकुमार आदि अन्य मुनि भी ऊर्जयन्त से मोक्ष को प्राप्त हुए इसलिए उस समय से गिरनार आदि निर्वाणस्थान संसार में विख्यात हुए और तीर्थयात्रा के लिए लोगों के आने से वे सुशोभित हुए। आचार्य गुणभद्रकृत "उत्तरपुराण" में प्रद्युम्न आदि मुनियों के सम्बन्ध में ऊर्जयन्तगिरि से निर्वाण प्राप्ति के साथ जिन कूटों से उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया था, उसकी भी सूचना दी गयी है। जिसमें कहा है कि -- -53--
SR No.032866
Book TitleJain Vidya Ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain
PublisherGommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
Publication Year2006
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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