________________ तीर्थङ्कर नेमिनाथ की जन्म और निर्वाण कल्याणक भूमियाँ -ज्ञानमल शाह, अहमदाबाद नेमिनाथ की गर्भ और जन्म-कल्याणक भूमि शौरीपुर शौरीपुर में तीर्थङ्कर नेमिनाथ का गर्भ कार्तिक शुक्ला षष्ठी और जन्म-कल्याणक श्रावण शुक्ला षष्ठी को हुआ। भगवान् नेमिनाथ की माता रानी शिवादेवी के गर्भ में आने से छ: माह पूर्व से जन्मपर्यन्त पन्द्रह मास तक इन्द्र की आज्ञा से राजा समुद्र विजय के घर पर देवों ने रत्नवर्षा जारी रखी और शौरीपुर में माता शिवादेवी तथा पिता समुद्रविजय से श्रावक शुक्ल पक्ष षष्ठी के चित्रा नक्षत्र में नेमि जिनेन्द्र का जन्म हुआ। देवों और इन्द्रों ने भक्ति और उल्लासपूर्वक भगवान् के गर्भ-कल्याणक और जन्म-कल्याणक दो महोत्सव शौरीपुर में अत्यन्त समारोह के साथ मनाये। इस कारण यह भूमि कल्याण-भूमि तीर्थक्षेत्र कहलाने लगी। केवलज्ञान कल्याणकभूमि शौरीपुर के गन्धमादन पर्वत पर सुप्रतिष्ठित मुनि तप कर रहे थे। उनके ऊपर सुदर्शन नामक एक यक्ष ने घोर उपसर्ग किया। मुनिराज ने उसे समतापूर्वक सहन कर लिया और आत्मध्यान में लीन रहे। फलत: उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हो गया। देवों और इन्द्रों ने केवलज्ञान कल्याणक बड़े समारोहपूर्वक मनाया। इन्हीं केवली के चरणों में शौरीपुर नरेश अन्धकवृष्णि और मथुरानरेश भोजवृष्णि ने मुनि दीक्षा ले ली। निर्वाणक्षेत्र मुनि धन्यकुमार यमुना तट पर ध्यानमग्न थे। शौरीपुर नरेश शिकार न मिलने के कारण क्षुब्ध था। उसकी दृष्टि मुनिराज पर पड़ी। उस मूर्ख ने विचार किया कि शिकार न मिलने का कारण यह मुनि है। उसने क्रोध और मूर्खतावश तीक्ष्ण बाणों से मुनिराज को बींध दिया। मुनिराज ने शुक्लध्यान द्वारा कर्मों को नष्ट कर मोक्ष पद प्राप्त कर सिद्ध भगवान् बन गये। इस प्रकार शौरीपुर गर्भ, जन्म, ज्ञानकल्याणक भूमि के साथ निर्वाण भूमि है, सिद्धक्षेत्र है। शौरीपुर का प्राचीन वैभव __ उत्खनन के परिणामस्वरूप यहाँ शिलालेख, खण्डित-अखण्डित जैन मूर्तियां और प्राचीन मन्दिरों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। सन् 1970-71 में जनरल कनिंघम के सहकारी ए.सी.एल. कार्लाइल शौरीपुर आये थे और उन्होंने यहाँ के खण्डहरों का सर्वेक्षण किया था। इससे यह सिद्ध हुआ कि शौरीपुर प्राचीन समय में अत्यन्त समृद्ध नगरी थी। वर्तमान शौरीपुर शौरीपुर में प्राचीनता के स्मारक के रूप में केवल दिगम्बर जैन मन्दिर शेष हैं जिसे आदि मन्दिर (बरुआ मठ) भी कहते हैं। इस मन्दिर का निर्माण संवत् 1724 (सन् 1667) में भट्टारक विश्वभूषण के उपदेश से हआ था। उसका उल्लेख शिलालेख में है। -छी