________________ पर योगासन में विराज गये। शेष कर्म-प्रकृतियों को भी असंख्यात गुण श्रेणी निर्जरा द्वारा घात करने लगे। केवली समुद्धात क्रिया के द्वारा नाम, गोत्र व वेदनीय कर्मों की स्थिति को आयु के समान कर 8 समय में आत्म प्रदेशों का संकोच विस्तार करके सूक्ष्म क्रिया प्रतिपाति व व्युपरत क्रिया निवृत्ति द्वारा शुक्ल ध्यान में आरूढ़ हुए। उसी समय अवशेष 85 कर्म प्रकृतियों का नाश कर अक्षय अनन्त सुख के धारी हो गये। वह आषाढ़ शुक्ला अष्टमी थी, (आजकल यह कालाष्टमी के नाम से पूजी जाती है) जब भगवान का मोक्ष-कल्याणक हआ। आज असंख्य वर्षों के बाद भी इनकी सम्मेदशिखर निर्वाण भूमि पर जाकर साधक जीव, सिद्ध भगवान् का स्मरण करते हैं और विशुद्ध आत्मगुणों को पाने की भावना करते हैं। - 44