________________ तीर्थङ्कर विमलनाथ एवं उनकी पञ्चकल्याणक तीर्थ भूमियाँ - प्राचार्य निहालचन्द जैन, बीना कम्पिला नगरी का सांस्कृतिक वैभव भगवान् विमलनाथ के चारों कल्याणक कम्पिला नगरी में हुए, जो फर्रुखाबाद जिले में कायमगंज तहसील का एक गांव है। यह रेलवे स्टेशन कायमगंज़ से 7-8 किमी दूर पक्की सड़क से जुड़ा है। यहीं भगवान् विमलनाथ की प्रथम दिव्य ध्वनि खिरी थी। आद्य तीर्थङ्कर ऋषभदेव, पार्श्वनाथ व भगवान् महावीर का समवशरण यहाँ आया था। यह भारत की प्राचीन सांस्कृतिक नगरी है जो पांचाल जनपद के अन्तर्गत अहिच्छत्र और कम्पिला के नाम से जानी जाती है। यही पाण्डुपुत्र अर्जुन ने लक्ष्य भेद कर द्रुपद सुता द्रौपदी के साथ विवाह किया था। गर्भ-कल्याणक भरत क्षेत्र के काम्पिल्य नगर में स्वामी कृतवर्मा राज्य करते थे। जयश्यामा उनकी पटरानी थी। सहस्रार स्वर्ग का वही इन्द्र, आयु पूर्ण कर महारानी के गर्भ में आने वाला था। इन्द्र की आज्ञा से कुबेर ने काम्पिल्य नगर व राजप्रासाद में 6 माह पूर्व से रत्न-वर्षा प्रारम्भ कर दी। रानी ने ज्येष्ठ कृष्णा दशमी रात्रि के अन्तिम प्रहर में 16 स्वप्न देखें, जो त्रिलोकीनाथ तेरहवें तीर्थङ्कर भ० विमलनाथ के अवतरण की पूर्व सूचना थी। जन्म-कल्याणक महारानी जयश्यामा न्यायप्रिय, विदुषी, मेधा की धनी और प्रियभाषिणी थी। गर्भ के 9 माह पूर्ण होने पर माघ शुक्ला चतुर्दशी के दिन तीन ज्ञान के धारी का अहिर्बुध्न योग में जन्म हुआ। इन्द्रों ने उस अद्वितीय पराक्रमी बालक को सुमेरुपर्वत पर ले जाकर जन्माभिषेक किया और बालक का नाम 'विमलवाहन' रखा। उनके दक्षिण पैर में इन्द्र ने 'सुअर' का चिह्न देखा। तीर्थङ्करों के चिह्नों में जीव दया की भावना सन्निहित रहती है। जो उन विशिष्ट तीर्थङ्कर प्रभु की पहचान होती है। भगवान् विमलनाथ का सुअर ‘मल्ल' का विमल में रूपान्तरण है। जो इस तथ्य को बताता है कि व्यक्ति यदि अस्वच्छता से ऊपर उठने की कोशिश करे तो एक दिन वह वीतरागता की ऊँचाइयां छूता है। 'सुअर' का चिह्न 'समत्व' की प्रतिध्वनि को पूरी बुलन्दी से आकाश चूम रहा है। कुमार-काल एवं यौवन __बालक विमलनाथ द्वितीया के मयंक के समान बढ़ने लगे। उनकेशरीर की अवगाहना क्रमश: बढ़ती हुई 60 धनुष हो गयी। वे 60 लाख वर्ष की आयु लेकर महान् लोकोत्तर पुरुष के रूप में उनकी बुद्धि, कला और ज्ञान बढ़ता गया। सुवर्ण के समान देहकान्ति थी। उन्होंने बाल्यावस्था के 15 लाख वर्ष आनन्द में व्यतीत किये। कुमारकाल पूर्ण होते ही माता-पिता ने गार्हस्थ्य-जीवन में प्रवेश कराया। लक्ष्मी उनके साथ जन्मी थी, वैभव संग खेला था। कीर्ति व सरस्वती ने इन्हें स्वयं स्वीकार किया और इन्द्र ने 'विमलवाहन' का राज्याभिषेक कर 'महाराजा' पद से सुशोभित किया। आपने 30 लाख वर्ष राज्य संचालन एवं राज-वैभव धर्म, अर्थ, काम त्रि-पुरुषार्थपूर्वक भोग किया। -42