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________________ में आकर देवों को भी बारहवें तीर्थङ्कर वासुपूज्य के पांच कल्याणक महोत्सव मनाने का सौभाग्य मिला था, जहाँ राजा शाल, महाशाल, अशोक, जितशत्रु, सेठ सुदर्शन, दधिवाहन आदि ने मुनि दीक्षा प्राप्त की थी, जिसे मल्लिनाथ, मुनिसुव्रतनाथ, नमिनाथ और महावीर- इन तीर्थङ्करों ने विहार कर अपनी चरण-रज से पवित्र किया है, जहाँ के राजा वसुपूज्य, कुणिक, दधिवाहन, जितशत्रु, करकण्डु आदि राजाओं ने जैनधर्म के प्रचार-प्रसार में अपना योगदान दिया, जो सेठ भानु, चारुदत्त, पलित, सागरदत्त आदि कुबेर सदृश वैभवशाली, लक्ष्मीपतियों से अलङ्कत थी और जिसकी सीमा पर रजत मौलि नदी के किनारे स्थित मनोहर उद्यान से सुशोभित मुकुटवत मन्दारगिरि पर्वत स्थित था। निर्वाण-भक्ति, तिलोयपण्णत्ति, भगवती आराधना और स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा : में चम्पानगरी के प्रसंग उपलब्ध हैं। इस सिद्धक्षेत्र का मूल मन्दिर काल-धर्म के कारण कई बार जीर्ण हुआ और हर बार उसका नवीनीकरण या पुनर्निर्माण होता रहा। उसमें नये-नये जिनबिम्ब प्रतिष्ठित होते रहे। आज चम्पापुर में हम जिन मन्दिरों का दर्शन करते हैं उनका मूल वास्तु लगभग हजार साल प्राचीन है। चम्पापुर की प्रमुख और नयनाकर्षक विशेषता वे ऊँचे गोलस्तम्भ हैं जो हमारी वास्तु-परम्परा से हटकर अपना अलग अस्तित्व जताते हैं। कहा जाता है कि मन्दिर के चारों ओर ये चार स्तम्भ थे। पिछले दो सौ साल के भीतर भूकम्प आदि के कारण उनमें से दो स्तम्भ तो बिल्कुल नष्ट हो गये तथा शेष दो क्षतिग्रस्त होकर बने रहे।यह प्रसन्नता की बात है कि क्षेत्र व्यवस्थापन समिति की उदार दृष्टि के कारण उनकी सार-सम्हार समय पर हो गयी और वे दो स्तम्भ अपने मूल रूप में हमें देखने को मिल रहे हैं। इनके बारे में यहां कुछ विचार करने की आवश्यकता है। इन स्तम्भों को मानस्तम्भ नहीं माना जा सकता। इसके मुख्य कारण हैं१. इनका व्यास नीचे से ऊपर का समान है, अत: वह मानस्तम्भ की कटनी वाली शैली को प्रदर्शित नहीं करते। 2. वे मन्दिर के चारों ओर चार बने थे, जबकि मानस्तम्भ तो मन्दिर के सामने एकमात्र ही बनना चाहिए, चार नहीं। 3. इनमें ऊपर जिनबिम्ब विराजने के लिए मढ़िया या वेदी का कोई प्रावधान नहीं है, जो मानस्तम्भ का अनिवार्य अंग है। 4. इनमें भीतर से ऊपर जाने या नीचे उतरने की सीढ़ियाँ बनी हुई थीं, जो मानस्तम्भ में नहीं होनी चाहिए। वर्तमान में चम्पापुर भागलपुर रेलवे स्टेशन के पास में ही नाथनगर स्थित नामक मुहल्ला को ही जाना जाता है, जहाँ भव्य मन्दिर, उपवन व धर्मशालाएं हैं। वहीं मन्दारगिरि पर्वत भागलपुर से 50 किलोमीटर दूर है। निकटस्थ गांव तथा रेलवे स्टेशन मन्दारहिल है। वर्ष 1996 में आचार्य श्रीभरतसागरजी ने भगवान् वासुपूज्य स्वामी की लगभग सवा सात फीट ऊँची प्रतिमा, जो प्रतिष्ठा के उपरान्त नीचे मन्दिरजी में विराजमान थी और निहित स्वार्थी लोग उसे मन्दारगिरि पर विराजमान नहीं होने देते थे, को 4 जून 1996 को ऐतिहासिक समारोह में पर्वत पर विराजमान कराकर इस क्षेत्र को एक और महत्त्वपूर्ण कड़ी से जोड़ दिया। -41.
SR No.032866
Book TitleJain Vidya Ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain
PublisherGommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
Publication Year2006
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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