________________ परमात्मा बनने के बाद अपनी दिव्यध्वनि के द्वारा आत्मकल्याणकारी धर्म का प्रथम उपदेश दिया और अन्त में कर्म-निरोध कर अष्टापद (कैलाश) पर्वत से माघ कृष्ण चतुर्दशी को निर्वाण प्राप्त किया। इस प्रकार हम पाते हैं कि भगवान् ऋषभदेव का सर्वाङ्गीण व्यक्तित्व एवं कृतित्व जन-जन के लिए प्रेरणाप्रद है। वे विश्व संस्कृति के विराट् व्यक्तित्व एवं 'सत्यं शिवं सुन्दरम्' के समन्वित स्वरूप वाले हैं। प्रस्तुत लेख में शास्त्रीय सन्दर्भो के आलोक में तीर्थङ्कर ऋषभदेव के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। -14