SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भारत के 16000 पुष्पी पौधों में से लगभग एक तिहाई अर्थात् 5000 जातियाँ ऐसी हैं जो केवल भारत में ही पायी जाती हैं, वे स्थानिक (Endemic) हैं और भारत के बाहर किसी भी देश में नहीं मिलती। इनमें से लगभग 3000 बिरली हैं और कुछ तो लुप्तप्राय हैं। भारत के कई वन क्षेत्र संरक्षित घोषित कर दिये गये हैं जिन्हें Biosphear Zone कहते हैं। इस तरह भारत में 13 Biosphear Zone नीलगिरि पर्वत (Silent Valley), तमिलनाडु, कान्हा-किसली, मण्डला (मध्य प्रदेश), नन्दा देवी (उत्तर प्रदेश) आदि की प्राकृतिक सम्पदा को सुरक्षित रख पर्यावरण को शुद्ध रखने का अथक प्रयास जारी है। __ जैन संस्कृति में सदा से ही समूचे प्राकृतिक वनों, वन्य जीव-जन्तुओं के प्रति आदर भावना रही है एवं इस समय भी बनी है जो तीर्थङ्करों के चिह्न एवं केवलज्ञान-प्राप्ति के वृक्ष उपदेशक एवं प्रेरणा स्वरूप आज भी हैं तथा ऋषि-मुनियों द्वारा प्राकृतिक वन-सम्पदा के संरक्षण का सबसे अच्छा माध्यम था एवं अभी है। इनको धर्म, आस्था, रीति-रिवाज एवं तीज-त्योहारों से जोड़ देने का, नदियों को पावन मानना, सूचक था इनको गन्दगी से बचाने का। हमारे लोक-साहित्य में वृक्षों और जीव-जन्तुओं के पूजन तथा सुन्दरता की महिमा का आशय थाबारम्बार हमें स्मरण कराने का कि ये सभी आदरणीय हैं, इनका संरक्षण कराने का कि ये सभी आदरणीय हैं, इनका संरक्षण न केवल हमारा धर्म है, ये हमारे हित में हैं, क्योंकि प्रकृति ही प्राण-वायु के साथ-साथ भोजन, ईंधन, औषधि, छाया तथा वर्षा का योग देकर खुशहाल बनाती हैं। जैन तीर्थङ्करों के भी चिह्न बैल, हाथी, घोड़ा, बन्दर, चकवा, मगरमच्छ, गैंडा, भैंसा, सुअर, सेही, हिरण, बकरा, मछली, कछुआ, सर्प, सिंह एवं उनके केवली ज्ञान-प्राप्ति वाले वृक्षों के बारे में वर्णन मिलता है जो कि आज के युग में उपर्युक्त रीति-रिवाजों से 'अहिंसा परमोधर्म:' के मूल मन्त्र से सुरक्षित है जो सिर्फ भारतभूमि की ही जलवायु में प्रथम तीर्थङ्कर श्री आदिनाथ (वैदिक युग) से लेकर आज तक जीवित बच रहे हैं एवं समस्त प्राणियों को जीवनदान देकर अन्योन्याश्रित हैं। वैदिककाल से (5000 बी.सी.) ही तपस्या के क्रम में सभी तीर्थङ्करों के विशुद्ध ज्ञान (केवलज्ञान) की प्राप्ति किसी न किसी वृक्ष की छाया में प्राप्त हुई थी, उन्हें जैनधर्म में केवली वृक्ष ( Enlightenment Tree) कहा जाता है (Table 1) / जैनधर्म आचार्यों व उपाध्यायों का मानना है कि केवली वृक्षों में तीर्थङ्करों के अंश विद्यमान रहते हैं जिनकी सेवा, दर्शन या अर्चना से सम्बन्धित तीर्थङ्करों की कृपा प्राप्त होती है। अतः सर्वमंगलमय जीवन के लिए प्राकृतिक वन-सम्पदा, जीव-जन्तुओं को सुरक्षित रखने के लिए जैनधर्म स्थलों पर केवली वृक्षों के रोपण से उस स्थल की आध्यात्मिक शक्ति में वृद्धि कर समस्त प्राणी जगत् को स्वस्थ, प्रसन्न एवं धन-धान्य व अहोभागी बना सकते हैं। ___ चूँकि सभी 24 तीर्थङ्करों का एक चक्र (विशिष्ट काल अवधि) में क्रमश: अवतरित होते हैं अत: केवली वृक्षों को एक चक्र की परिधि पर क्रम से रोपित करने से समस्त जगत् के प्राणियों को वर्तमान एवं भविष्य में भी नवजीवन प्रदान करने में सहायक होते रहेंगे। . -12
SR No.032866
Book TitleJain Vidya Ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain
PublisherGommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
Publication Year2006
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy