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________________ जैन समुदाय भारत और विदेशों में : एक जनसंख्यात्मक अध्ययन - डॉ. प्रकाशचन्द्र जैन, नई दिल्ली प्रस्तुत लेख में भारत और विदेशों में रह रहे जैन समुदाय से सम्बन्धित कतिपय पक्षों का एक समाज शास्त्रीय अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। इन पक्षों में प्रमुख है जनसंख्यात्मक परिवर्तन, आर्थिक स्थिति, जैनों की अल्पसंख्यक समुदाय होने की मांग और जैन समुदाय के बारे में नृतत्वशास्त्रीय/समाजशास्त्रीयअध्ययनों का लगभग अभाव। इन पक्षों के अतिरिक्त विदेशों में बसे जैनों का एक जनसंख्यात्मक विवरण भी लेख में प्रस्तुत किया गया है। जैनधर्म भारत के प्राचीनतम धर्मों में से एक है। यह श्रमण-परम्परा का वाहक है जो वैदिक-परम्परा से न केवल भिन्न है अपितु प्राचीनतर भी मानी जाती है। एक सामाजिक आन्दोलन के रूप में जैनधर्म ने जन्म-आधारित जाति-व्यवस्था, जाति-व्यवस्था में ब्राह्मण वर्चस्व, पशुयज्ञ, दासता, महिलाओं की द्वितीय दर्जे की स्थिति और राजनीतिक एकसत्तावाद जैसी अनेक प्रथाओं का विरोध किया था। आश्चर्य नहीं कि जैनधर्म का भारतीय संस्कृति पर गहरा प्रभाव पड़ा है। वर्तमान में जैन समुदाय एक अल्पसंख्यक समुदाय है। सन् 2001 की जनगणना में जैनों की कुल जनसंख्या करीब 42 लाख आंकी गयी थी। जैन मुख्यत: भारत के पश्चिमी भागों में केन्द्रित हैं- विशेष रूप से महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में। एक अनुमान के अनुसार जैनों में 80 प्रतिशत श्वेताम्बर और 20 प्रतिशत दिगम्बर हैं। लगभग 75 प्रतिशत जैन शहरों में रहते हैं। पुरुषों की तुलना में महिलाओं का अनुपात 1000 : 940 है जो कि एक चिन्ता का विषय है। यौन अनुपात की विषमता विवाह-सम्बन्धी अनेक समस्याओं को जन्म दे रही है। जैनों में साक्षरता का प्रतिशत 95 है। जैनों के सामने एक और चिन्ता का विषय है उनकी घटती हई जन्मदर जो 1991 की जनगणना में मात्र 4.42 प्रतिशत आंकी गयी थी। 2001 की जनगणना के अनुसार जैनों में बच्चों की जनसंख्या का भाग (0-6 वर्ष की आयु समूह में) मात्र 10.6 प्रतिशत था जो कि अन्य समुदायों की तुलना में न केवल बहुत कम है बल्कि जैनों में कम जन्मदर का भी परिचायक है। हालांकि 2001 के आंकड़ों के अनुसार जैनों की कुल जनसंख्या में 1991-2001 के दशक में 26 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है, विशेषज्ञों की राय में यह वृद्धि जन्मदर में बढ़ोत्तरी के कारण न होकर जनगणना के समय जैनों के अपनों को हिन्दू न लिखवाने के कारण हुई है अर्थात् इस बार की जनगणना में अधिकांश जैनों ने अपने को हिन्दू न कहकर जैन के रूप में संगणना में शामिल करवाया है। घटती हुई जन्मदर का मुख्यकारण यह है कि जैन समुदाय एक समृद्ध मध्यवर्गीय समुदाय बन चुका है। अतः लोग स्वत: ही कम बच्चे पैदा करते हैं। जनसंख्याविदों के मत से अगले कुछ दशकों में जैन -10
SR No.032866
Book TitleJain Vidya Ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain
PublisherGommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
Publication Year2006
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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