________________ इसमें बारह कक्ष होते हैं। अलग-अलग कक्ष में अलग-अलग वर्ग के जीव बैठते हैं तथा भगवान् का धर्मोपदेश सुनते हैं। ये वर्ग इस प्रकार से हैं- गणधर और मुनि, कल्पवासी देवियाँ, आर्यिकायें और श्राविकायें, ज्योतिषी देवियाँ, व्यन्तर देवियाँ, भवनवासी देवियाँ, भवनवासी देव, व्यन्तर देव, ज्योतिषी देव, कल्पवासी देव, मनुष्य, तिर्यञ्च। गणधर की उपस्थिति में तीर्थङ्कर की ध्वनि खिरती है जो कि ओंकार रूप होती है। तीर्थकर भगवान् घोर तपस्या द्वारा चार अघातिया कर्मों को भी नष्ट कर देते हैं और मोक्ष प्राप्त करते हैं। इन्द्र व देवता भगवान् का मोक्ष कल्याणक मनाने के लिए एकत्रित होते हैं। भगवान् का पार्थिव शरीर कम्फूर की तरह उड़ जाता है। तब इन्द्र भगवान् के कृत्रिम पार्थिव शरीर की रचना करता है और फिर उसका अग्नि-संस्कार किया जाता है। तीर्थङ्करों के जो पाँच कल्याणक होते हैं तथा जो अतिशय होते हैं, यह सब उनके प्रबल पुण्य का प्रताप ही है। ऐसे तीर्थङ्कर स्वयं तो मोक्षरूपी लक्ष्मी को प्राप्त करते ही हैं, अपने दिव्य उपदेशों से भव्य प्राणियों को भी संसार से पार लगाने में सहायक होते हैं। -10