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________________ समय-निर्धारण समन्तभद्र के समय निर्धारण के सम्बन्ध में विद्वानों ने चिन्तन किया है- 1. मि. लेविस राइस ने समन्तभद्र को ई. की प्रथम द्वितीय शताब्दी का अनुमान है। 2 कर्नाटक कविचरिते के रचयिता श्री नरसिंहाचार्य ने शक् संवत् 60 अर्थात् ई.सन् 138 का माना है। 3 अनेक ग्रन्थों के आधार पर आचार्य समन्तभद्र के सम्बन्ध में शोध खोज करने वाले आचार्य श्रीजुगलकिशोरजी मुख्तारसा ने, डॉ. ज्योतिप्रसादजी ने उन्हें सन् 120-185 के मध्य निर्णीत किया है। रचनाएँ आचार्य समन्तभद्र संस्कृत-साहित्य में स्तुति काव्य के प्रथम प्रणेता के रूप में मान्य हैं फिर भी आचार्य समन्तभद्र की निम्नलिखित रचनाएँ मानी गयी हैं१. बृहत् स्वयम्भू स्तोत्र 2. स्तुतिविद्या अपरनाम जिनशतक 3. देवागम स्तोत्र अपरनाम आप्तमीमांसा 4. युक्त्यनुशासन 5. रत्नकरण्डश्रावकाचार 6. जीवसिद्धि 7. तत्त्वानुशासन 8. प्राकृत व्याकरण 9. प्रमाण पदार्थ 10. कर्मप्राभृत टीका 11. गन्धहस्ति महाभाष्य उक्त रचनाओं में से वर्तमान में मात्र पांच रचनाएं ही उपलब्ध तथा प्रकाशित हैं। शेष रचनाएं खोज का विषय है। प्राप्त रचनाओं की विषयवस्तु एवं मौलिकता पर विवेचन मूल विस्तृत शोधालेख में देखा जा सकता है। इस प्रकार समन्तभद्र का संस्कृत-साहित्य एवं जैनदर्शन तथा आचार के लिए महत्त्वपूर्ण अवदान है। -151
SR No.032866
Book TitleJain Vidya Ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain
PublisherGommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
Publication Year2006
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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