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________________ जैनाचार्यों, सन्तों एवं कवियों ने प्रथम तीर्थङ्कर ऋषभदेव के साथ भरत और बाहुबली के जीवन चरित्र को समवेत एवं पृथक् रूप से भी रूपायित किया है। आठवीं शती के आचार्य जिनसेन के आदिपुराण में १०वीं शती के पुष्पदन्त के महापुराण में भरत बाहुबलि का वृत्त वर्णित है। आचार्य जिनसेन (प्रथम) के आदिपुराण में भरत बाहुबलि के आख्यान को सुनकर चामुण्डराय की माता को बाहुबलि की पोदनपुर (तक्षशिला- पाकिस्तान) स्थापित प्राचीन मूर्ति के दर्शन की अभिलाषा हुई थी। संवत् 1241 में रचित शालिभद्रसूरि का 'भरतबाहुबलिरास' राजस्थानी भाषा की संवतोल्लेख वाली प्रथम रचना है। इसमें 203 पद्य है। १३वीं शती में वज्रसेनसूरि द्वारा 45 पद्यों में विरचित भरतेश्वर बाहुबलि घोर ऐसी ही रचना है। ये दोनों रचनाएं रासा साहित्य की अपभ्रंश की अन्तिम, प्रारम्भिक व राजस्थानी की काव्यकला एवं भाषाविज्ञान के अध्ययन की दृष्टि से ये उपयोगी रचनाएं हैं। अपभ्रंश प्रभावित मरुगुर्जर-भाषा की इन दोनों रचनाओं में भरत-बाहुबलि का युद्ध वर्णित है। १५वीं शती के कवि धनपाल ने अपभ्रंश-भाषा में वि.सं. 1454 में बाहुबलिचरित की रचना की। ये गुजरात के पुरवाड़ वंश के तिलक स्वरूप थे। १५वीं शती के भट्टारक सकलकीर्ति एवं ब्रह्म जिनदास के संस्कृत व हिन्दी में आदिपुराण एवं आदिनाथरास में भरत-बाहुबलि का जीवनचरित वर्णित है। ब्र. जिनदास के सं. 1508 में रचित राम सारो में (जिसका उल्लेख हिन्दी के विदेशी विद्वान् फॉदर कॉमिल बुल्के ने रामकाव्य-परम्परा में किया है) ऋषभ, भरत व बाहुबलि का प्रसंग वर्णित है। बाहुबलि के सोमपुत्र से सोमवंश चला। . १६वीं शती के भट्टारक वीरचन्द्र ने (सं. 1556-82) बाहुबलि वेलि की रचना की यह एक लघु रचना है, जिसमें विभिन्न छन्दों का प्रयोग किया गया है। १७वीं शती के भट्टारक कुमुदचन्द्र ने 'भरतबाहुबलि' छन्द की सं. 1656 में रचना की, जो खण्डकाव्य है। इसमें भरत-बाहुबलि के युद्ध का वर्णन है। इसमें दूत और बाहुबलि के सुन्दर उत्तर-प्रत्युत्तर है। १७वीं शती के भुवनकीर्ति की भरत बाहुबलि चौपइ रचना है। वि. की १७वीं शती में पुण्यकुशलगणि ने 'भरतबाहुबलिकाव्यम्' की संस्कृत भाषा में रचना की। इस प्रकार मध्ययुग के जैन कवियों ने बाहुबलि के महनीय चरित्र को अपनी साहित्यिक विधाओं में व्यञ्जित किया है। काव्य-साहित्य में बाहुबलि पावन-पात्र हैं। मैंने अपने मूल विस्तृत आलेख में मध्ययुग के अनेक जैन काव्यों में वर्णित बाहुबलि के चरित्र का विस्तृत विवेचन किया है। -100 -
SR No.032866
Book TitleJain Vidya Ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain
PublisherGommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
Publication Year2006
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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