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________________ मध्ययुग के जैन-काव्यों में बाहुबलिचरित - डॉ. प्रेमचन्द्र रांवका, जयपुर मध्ययुग (१०वीं शती से १७वीं शती तक) में जैन कवियों द्वारा निबद्ध साहित्य सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण सामग्री प्रस्तुत करता है। इस युग का जैन-साहित्य भारतीय वाङ्मय का अपरिहार्य अंग है। इस मध्यकाल में जैन सन्त भक्त कवियों ने संस्कृत, अपभ्रंश, गुजराती, राजस्थानी व हिन्दी-भाषा में विशाल परिणाम में जैन-साहित्य रचा है। जैनाचार्यों, सन्तों एवं कवियों का भाषा-विशेष से कभी आग्रह नहीं रहा। उन्होंने सभी दृष्टियों से अपने समय में प्रचलित सभी भाषाओं में सभी विधाओं में लेखनी चलायी। यही कारण है कि प्राय: सभी प्राच्य भाषाओं में जैन कवियों द्वारा रचित साहित्य मिलता है। मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा और उसके विकास में मध्यकालीन जैन-साहित्य की प्रभावकारी भूमिका रही है। जैनधर्म-दर्शन जीवन्त धर्म है। उसमें मनुष्य की स्वतन्त्रता और समानता को सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है। मनुष्य के गौरव और उसकी मुक्ति के व्याख्याता सहस्राधिक जैन कवि हो गये हैं। लेकिन शास्त्र भण्डारों में बन्द होने से उनका सम्यकपेण मल्याङ्कन नहीं हो पाया है। जैन-साहित्य का निर्माण यद्यपि आध्यात्मिक धार्मिक भावना से प्रेरित होकर किया गया है; पर वह सम-सामयिक जीवन से कटा हुआ नहीं है। जैन कवि जनसामान्य के समीप रहे है। जैन-साहित्य तत्कालीन सामाजिक, सांस्कृतिक जीवन को समझने का सच्चा बैशेमीटर है। वहां जीवन की पवित्रता, नैतिक मर्यादा और उदात्त जीवनादर्शों का व्याख्याता होने के कारण यह साहित्य समाज के लिए सच्चा पथ-प्रणेता है। इसका अध्येता निराशा में आशा का सम्बल पाकर अन्धकार से प्रकाश की ओर चरण बढ़ाता है। काल को कला में, मृत्यु को मङ्गल में और ऊष्मा को प्रकाश में रूपान्तरित करने की क्षमता इस साहित्य में है। __ ऐतिहासिक महापुरुषों के जीवनचरित को आधार बनाकर काव्य लिखने की प्रवृत्ति ७वीं शती से चली आ रही है। जैन-काव्यों के मुख्य प्रतिपाद्य त्रेसठ महापुरुषों के चरित्र है, जिनमें 24 तीर्थङ्कर, 12 चक्रवर्ती, 4 बलदेव, 9 वासुदेव और 9 प्रतिवासुदेव हैं। पुण्य पुरुषों के चरित्र वर्णित होने से ये पुराण एवं चरित-काव्य कहे जाते हैं। इनमें महापुराण (आदिपुराण, उत्तरपुराण), हरिवंशपुराण और पद्मपुराण। रामचरित आदि मुख्य ही परवर्ती कथाकाव्यों के ये आधार ग्रन्थ हैं। प्रथम तीर्थङ्कर ऋषभदेव, उनके पुत्र द्वय भरत और बाहुबली के जीवनवृत्त को लेकर मध्ययुग के जैन कवियों ने संस्कृत, अपभ्रंश, राजस्थानी और गुजराती आदि भाषाओं में लघु-बृहद् महाकाव्यों (खण्ड एवं प्रबन्ध काव्यों) की रचनाएं की है। बाहुबलि प्रथम कामदेव थे। पिताश्री ने उन्हें पोदनपुर का राज्य दिया। भरत चक्रवर्ती के सारा भूमण्डल विजय करने के पश्चात् बाहुबलि ने उनकी अधीनता स्वीकार नहीं की। दोनों भाइयों में परस्पर युद्ध हुआ। बाहुबलि ने विजयी होने के बाद भी वैराग्य ले लिया और कठोर साधनोपरान्त पिता ऋषभदेव से पूर्व मुक्त हो गये। इसी आख्यान को लेकर आचार्य सन्त कवियों ने काव्य रचे। .ک- کپ
SR No.032866
Book TitleJain Vidya Ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain
PublisherGommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
Publication Year2006
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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