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________________ अमरचन्द्रकृत 'पद्मानन्द महाकाव्य' में भगवान् बाहुबली का चित्रण - डॉ. शेखरचन्द्र जैन, अहमदाबाद पद्मानन्द महाकाव्य अमरचन्द की संस्कृत में लिखी गयी श्रेष्ठ अमर कृति है। सन् 1932 में बड़ौदा की ओरियण्टल इन्स्टीट्यूट द्वारा इसका प्रकाशन किया गया था। पू. अमरचन्दसूरि महान् जैन आचार्य एवं संस्कृत-भाषा के उत्कृष्ट पण्डित थे। आपने यह महाकाव्य जो भगवान् आदिनाथ का सम्पूर्ण चरित्र है उसे महाकाव्य की शैली में प्रस्तुत किया है। श्री अमरचन्दसूरिजी जिनदत्तसूरि के शिष्य थे, जिन्होंने विवेक-विलास नामक महाकाव्य की रचना की थी। ऐसा कथन प्राप्त होता है कि गुरु-परम्परा में श्री राशिलसूरि महाराज अणहिलवाड़ शहर में चातुर्मास हेतु विराजमान थे। जहाँ पर मन्त्री पद्म एवं श्रावकों द्वारा चौबीस जिनेश्वरों का चरित्र सुनने के लिए समाज प्रार्थना करता है और आचार्यश्री जिनदत्तसूरीश्वर के श्रेष्ठ शिष्य और अपने गुरुभाई श्री अमरचन्द से उनकी प्रार्थना पूरी करने के लिए कहते हैं। इस प्रकार पद्म नामक मन्त्री द्वारा एवं समाज के समर्थन से श्री अमरचन्दसूरि ने 24 तीर्थङ्करों का जिनेन्द्र चरित्र उन्हें सुनाया जो सबको बड़ा ही रुचिकर लगा और इसी हेतु उन्होंने इस महान् संस्कृत महाकाव्य की रचना की। ऐसा उल्लेख मिलता है कि उन्होंने पद्मनाभ काव्य की रचना संवत् 1277 में खम्भात में की थी। ऐसा भी उल्लेख है कि इस पद्मानन्द महाकाव्य पर कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य के त्रिषष्ठिशलाकापुरुष का प्रभाव है। यह सत्य है कि आचार्य अमरचन्द ने इस महाकाव्य को लिखकर संस्कृत-साहित्य को समृद्ध किया है। विद्वान् श्री एच.आर. कापडियाजी ने तो इसकी तुलना कालिदास और भवभूति तक से की है। संस्कृत वाङ्मय की दृष्टि से यह संस्कृत-साहित्य की अमर कृति है। कृति के १७वें सर्ग में भगवान् बाहुबली के चरित्र का, उनके शौर्य का एवं उनके वैराग्य का बड़ा ही आलंकारिक भाषा में वर्णन हुआ है। १७वें सर्ग के उपरान्त कवि ने प्रसंगानुसार १०वें और १३वें सर्ग में भी उनका उल्लेख किया है एवं उन्हें सिखाई गयी पुरुष, स्त्री, हस्ति एवं अश्व परीक्षण की कला का भी उल्लेख है। कवि ने सर्वत्र कथानक के साथ प्रसंगानुसार अलंकृत भाषा में वर्णन प्रस्तुत किये हैं। चाहे वह नगर की सजावट का वर्णन हो या बाहुबली के रूप सौन्दर्य का वर्णन हो। जब ऋषभदेव विहार करते हुए बहली नामक देश की तक्षशिला नगरी के उपवन में पधारे और बाहुबलीजी समाचार प्राप्त करते हैं और सारी नगरी को सजाने का आदेश देते हैं, उसका एक ही उदाहरण देखें “तरंगों की तरह उछलते वस्त्रों की श्रेणी जैसे सौभाग्य लक्ष्मी का अंचल हो ऐसे शोभित होने लगी। हर स्थान ऐसा सुशोभित था मानो बाहुबली के गुणरूपी लक्ष्मी हेतु विलास करने के लिए कमल की शैय्या के समान थी।" इसी प्रकार उनके रूप, शृङ्गार, सेना आदि के बड़े ही आलङ्कारिक वर्णन कृति में किये गये हैं। -101
SR No.032866
Book TitleJain Vidya Ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain
PublisherGommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
Publication Year2006
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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