________________ पुत्री ब्राह्मी तपस्वी बाहुबली को इस मानकषाय से मुक्त होने की सलाह देती है। कथा की एक परम्परा यह भी है कि भरत स्वयं बाहुबली को इस मानकषाय से मुक्त होने की सलाह देते हैं। आचार्य कुन्दकुन्द (प्रथम शती ई.) का भावपाहुड कदाचित प्रथम ग्रन्थ है जिसमें बाहुबली की इस मानकषाय का उल्लेख हुआ है (गाथा 44) / तिलोयपण्णत्ति (५-६वीं शती) में यतिवृषभ ने उन्हें चौबीस कामदेवों में एक माना है। धर्मदासगणि की उवएसमाला में बाहुबलि दृष्टान्त प्रकरण में भरत और बाहुबली की कथा वर्णित है जो काफी अलंकृत शैली में है। __ आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती (१०वीं शती) की गोम्मटेस थुदि तो बड़ी लोकप्रिय रचना है ही, जिसका हिन्दी, कन्नड़ आदि भाषाओं में अनुवाद हुआ है। 3. हिन्दी-काव्य में बाहुबली कथा ___हिन्दी जैन-काव्य में बाहुबली पर संस्कृत-प्राकृत की अपेक्षा अधिक लिखा गया है। उसमें हिन्दी के आदिकाल से लेकर आधनिक काल तक प्रभत ग्रन्थ उपलब्ध होते है। उनमें जो भी ग्रन्थ उपलब्ध हो सके हैं उनका विवरण हम यहाँ दे रहे हैं। इस विवरण को हम निम्न भागों में विभाजित कर सकते हैं- (1) रासा, वेलि आदि साहित्य, (2) प्रबन्धकाव्य, (3) नाट्य साहित्य, (4) पूजा-स्तोत्र साहित्य, (5) उपन्यास, (6) ऐतिहासिक/शोधात्मक साहित्य, (7) अन्य साहित्य। 1. रासा-साहित्य हबलिराय, जिनवररास, भरतबाहुबलिरास, बाहुबलि चौपई आदि का विवेचन हुआ है। 2. प्रबन्ध-काव्य प्रबन्ध-काव्य के दो भेद है - महाकाव्य और खण्डकाव्य। बाहुबली कथा पर तीन महाकाव्य और एक खण्ड-काव्य लिखा गया है। महाकाव्यों में सर्वप्रथम डॉ. रमेशकुमार बुधौलिया का “परे जय-पराजय के" प्रकाशित हुआ नरसिंहपुर से 1981 में। दूसरा महाकाव्य 'ऋषभायण' के शीर्षक से डॉ. छोटेलाल नागेन्द्र का निकला जैन भवन, मुरादाबाद से 1987 में और तीसरे महाकाव्य का सृजन किया 'ऋषभायण' नाम से ही आचार्य महाप्रज्ञ ने जो जैन विश्वभारती लाडनूं से 1999 में प्रकाशित हुआ। खण्डकाव्य की श्रेणी में प्रसिद्ध कवि मिश्रीलाल जैन का ही 'गोम्मटेश्वर' काव्य प्रकाश में आया है (राहुल प्रकाशन, गुना, 1980) / 3. नाट्य-साहित्य रूपक (नाटक)/नाटिका किसी भी परम्परागत कथा या नायक के व्यक्तित्व को समझने/समझाने का एक प्रभावक माध्यम है। भरत और बाहुबली की जीवन रेखाएं रूपक और एकाकी के माध्यम से लेखकों ने प्रस्तुत की है। विष्णु प्रभाकर, कस्तूरचन्द्र कासलीवाल, युगल आदि कुछ ऐसे लेखक हैं जिन्होंने इस माध्यम को स्वीकार किया है। --56