SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 701 श्री जैनव्रत-कथासंग्रह . ******************************** (14) श्री निःशल्य अष्टमी व्रत कथा) वन्दू नेमि जिनेन्द्र पद, बाईसवें अवतार। कथा निःशल्य आठम तनी, कहूँ सुखदातार॥ भरतक्षेत्रके आर्यखण्डमें सोरठ नामक देश है (वर्तमानमें काठियावाड कहते हैं) इस देशमें द्वारका नामकी सुन्दर नगरी है यहां पर श्री नेमिनाथ बाईसवें तीर्थंकरका जन्म हुआ था। जिस समय भगवान नेमिनाथ दीक्षा लेकर गिरनार पर्वत पर तपश्चरण करते थे और द्वारकामें श्री कृष्णचंद्रजी नवमें नारायण राज्य करते थे, ये त्रिखण्डी नारायण थे। इनकी मुख्य पट्टरानी सत्यभामा थी सो सत्यभामाके द्वारा एक बार नारदका अपमान हुआ, इसपर नारद क्रोधवश इसे दण्ड देनेके अभिप्रायसे रूक्मिणी नामकी राजकन्यासे नारायणका विवाह कराकर सत्यभामाके सिरपर सौतका वास करा दिया। निःसंदेह सौतका स्त्रियोंको बहुत बड़ा दु:ख होता है। एक समय जब भगवान नेमिनाथको केवलज्ञान प्रगट हो गया तो श्री कृष्ण रानियों और पुरजनों सहित वन्दनाको गये और वन्दना करके धर्मोपदेश सुनकर अनन्तर रूक्मिणी नामक रानीके भवान्तर पूछे? तब भगवानने कहा कि मगधदेशमें राजगृही नगर है वहां पर रूप और यौवनके मदसे पूर्ण एक लक्ष्मीमती नामकी ब्राह्मणी रहती थी। एक दिन एक मुनिराज क्षीण शरीर दिगम्बर मुद्रायुक्त आहारके निमित्त इस नगरमें पधारे। उन्हें देखकर ब्राह्मणीने उनकी बहत निन्दा की और दर्षचन कहकर उपर थूक दिया।
SR No.032856
Book TitleJain 40 Vratha katha Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipchand Varni
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2002
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy