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________________ श्री श्रुतस्कन्ध व्रत कथा [39 ******************************** वाणीको चार ज्ञानधारी गणनायक मुनि अल्पज्ञानी जीवोंके संबोधनार्थ (आचारांग, सूत्रकृतांग, समवायांग, व्याख्याप्रज्ञप्ति, ज्ञातृकथांग, उपासकाध्ययनांग, अन्तकृद्दशांग, अनुत्तरोपपादकदशांग प्रश्नव्याकरणांग, सूत्रविपाकांग और दृष्टिप्रवादांग) इस प्रकार द्वादशांग रुपसे कथन की। फिर इन्हींके आधारसे और मुनियोंने भी भेदाभेद पूर्वक देशभाषाओंमें कथन की हैं। यह जिनेन्द्रवाणी समस्त लोकालोकके स्वरुप और त्रिकालवर्ती पदार्थोको प्रदर्शित करनेवाली समस्त प्राणियोंके हितरूप मिथ्यामतोकी उत्थापक, पूर्वापरके विरोधसे रहित अनुपमेय है, सो जो भव्यजीव इस वाणीको सुनकर हृदयरूप करता अथवा उसकी भावना भाकर व्रत संयम धारण करता है, वह भी अनेक शास्त्रोंका पारगामी हो जाता है। इस व्रतकी विधि इस प्रकार है कि भादों मासमें नित्य श्री जिन चैत्यालयमें श्रुतस्कंध मण्डल मांडकर श्रुतस्कन्ध पूजन विधान करे और एक मासमें उत्कृष्ट 16, मध्यम 10 और जधन्य आठ उपवास करे। पारणा के दिन यथाशक्ति नीरस व एक दो आदि रस छोडकर एकभुक्त करे। इस प्रकार यह व्रत बारह वर्ष तक अथवा पांच वर्ष तक करे, पीछे उद्यापन करे बारह बारह उपकरण घण्टा, झालर, पूजाके वर्तन, छत्र, चमर, चन्दोवा, चौकी वेष्टनादि मंदिरमें भेट करे, शास्त्र लिखाकर जिनालयमें पधरावे, तथा श्रावकोंको भेट देवे और शास्त्र-भण्डारोंकी सम्हाल करे, नवीन सरस्वती भवन बनावे, सर्वसाधारणजनोंको श्री जिनवाणीका उपदेश करे और करावे। इस प्रकार यह व्रत धारण करनेसे अनुक्रमसे केवलज्ञानकी प्राप्ति होकर सिद्धपद प्राप्त होता हैं। जाप्य नित्य दिनमें तीन बार जपे-'ॐ ह्रीं श्री जिनमुखोद्भूतस्याद्वादनयगर्भितद्वादशांगश्रुतज्ञानेभ्यो नमः' और भावनां भावे। इस प्रकार राजा गुणभद्र और गुणवती रानीने व्रतकी विधि
SR No.032856
Book TitleJain 40 Vratha katha Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipchand Varni
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2002
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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