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________________ - श्री ज्येष्ठ जिनवर व्रत कथा [139 ******************************** (31 श्री ज्येष्ठ जिनवर व्रत कथा) * . श्री जिनराज ऋषभदेवको नमस्कार करता हूँ, सुख सिद्धिके हेतु शारदा (सरस्वती-जिनवाणी) को नमस्कार करता हूँ और शुभमति (सबुद्धि) प्राप्तिके लिए गौतम गणराजाको नमस्कार कर ज्येष्ठ जिनवर व्रतकी कथा कहता हूँ। . भरतक्षेत्रमें आर्यखण्डमें गुजरात नामका देश है जिसमें सुप्रसिद्ध खम्भपुरी (वर्तमान खंभात Cambay) नामकी नगरी है। इस नगरीका शासक चंद्रशेखर राजा था जो कि गुणवान था और उसकी रानी चंद्रमती थी। इसी नगरीमें एक सोमशर्मा ब्राह्मण था जो अपनी सोमिल्या पत्नीके साथ सुखपूर्वक रहता था। सोमशर्मा ब्राह्मणके जज्ञ नामक बालक एक पुत्र था और इस जज्ञ बालकको सोमश्री नामक स्त्री थी। ... अपने पिता सोमशर्माकी मृत्यु जज्ञ बालकको अत्यंत दु:ख हुआ। सोमिल्या सासने सोमश्रीको रजत कलश भरनेको दिये और कहा-ये कलश ब्राह्मणोंके घर भेज देना तथा पीपर (पिप्पल वृक्ष) को जल चढाना | सासकी आज्ञा लेकर सोमश्री पनघट पर गई वहां उसे एक सखी मिली तो वह खडी हो गई। वहां एक बडा जैन मंदिर था, सखीने कहा कि आज नगरीके सब लोग यहां पूजन करते हैं। सोमश्रीने यह सुना और उसकी बुद्धि जाग्रत हुई, और कलशमें पानी भरकर जैन चैत्यालय गयी तो वहां गुरुके पास ज्येष्ठ जिनवर व्रत लिया, जिसकी संक्षिप्त विधि निम्न प्रकार है__यह व्रत ज्येष्ठ महीनेमें किया जाता है। ज्येष्ठ कृ. 1 (गुजराती वैशाख कृ. 1) को उपवास फिर 14 एकाशन, व ज्येष्ठ शु. 1 को प्रोषधोपवासके बाद फिर 14 एकाशन, इस .
SR No.032856
Book TitleJain 40 Vratha katha Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipchand Varni
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2002
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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