________________ 138] श्री जैनव्रत-कथासंग्रह ******************************** यह व्रत करके उत्तम फल प्राप्त किया था, यह कृपा करके बतलाइये। तब मुनिराज बोले. श्री कवलचांद्रायण व्रत एक माहका होता है व किसी भी महिनेमें इस प्रकार किया जा सकता है-प्रथम अमावस्याके दिन उपवास करना, फिर एकमके दिन एक ग्रास, दूजके दिन दो ग्रास, इस प्रकार चौदसको 14 ग्रास लेकर पूनमको उपवास करे फिर वदी 1 को 14, दूजको 13, उस प्रकार घटाते घटाते जाकर वदी 14 को एक ग्रास आहार लेकर अमावस्याको उपवास करें तथा इन दिनोंमें आरम्भ व परिग्रहका त्याग करके श्री मंदिरजीमें श्री चंद्रप्रभुका पंचामृताभिषेक करके श्री चंद्रप्रभुकी पूजा देवशास्त्र, गुरूपूजा पूर्वक करें। तथा सारा दिन धर्मसेवनमें तथा शास्त्र स्वाध्यायादिमें व्यतीत करे। प्रतिपदाको पारणाके दिन किसी पात्रको भोजन कराकर पारणा करे। और अपनी शक्ति अनुसार चारों प्रकारका दान करे और यथा शक्ति उद्यापन भी करे जिसमें 30 फल व 30 शास्त्र बांटे। .. ___श्री महावीर प्रभु राजा श्रेणिकसे कहते हैं-राजन! महा तपस्वी श्री बाहुबलिजीने इस कवलचांद्रायण व्रतको किया था जिसके प्रभावसे उनको केवलज्ञान प्राप्त हुआ था तथा श्री ऋषभदेवकी पुत्री ब्राह्मी व सुन्दरीने भी यह व्रत किया था जिसके प्रभावसे वे दोनों स्त्रीलिंग छेदकर अच्युत स्वर्गमें यतीन्द्र हुये थे, और वहांसे चयकर मनुष्य भव लेकर मुनि पद लेकर उन्होंने केवलज्ञान प्राप्त किया था। अतः जो कोई मुनि, आर्जिका, श्रावक, श्राविका यह व्रत करेंगे वे यथा शक्ति स्वर्ग मोक्षको प्राप्त करेंगे और जो पंच पाप, सात व्यसन और चार कषायोंको त्यागकर शुद्ध भावसे इस व्रतको करेंगे वे एक दो भव धारण करके मोक्षको जावेंगे।