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________________ [125 श्री पुष्पांजलि व्रत कथा ******************************** जब यह सब वार्ता राजाने सुनी, तब उन्होंने गुणधरको बुलाकर सब वृत्तांत पूछा-और अत्यन्त प्रसन्न हो अपनी परम सुन्दरी कन्या गुणधरको ब्याह दी, तथा बहुतसा दान दहेज दिया। इस प्रकार बहुत वर्षों तक वे सातो भाई राज्यमान्य होकर सानन्द वहीं रहे, पश्चात् माता-पिताका स्मरण करके अपने घर आये, और माता-पितासे मिले। पश्चात् बहुत काल तक मनुष्योचित सुख भोगकर सन्यासपूर्वक मरणकर यथायोग्य स्वर्गादि गतिको प्राप्त हुए और गुणधर उससे तीसरे भव मोक्ष गये। . इस प्रकार व्रतके प्रभावसे मतिसागर सेठका दरिद्र दूर हुआ। और उत्तमोत्तम सुख भोगकर उत्तम उत्तम गतियोंको प्राप्त हुए। जो और भव्यजीव श्रद्धा सहित बारह वर्ष व्रत पूर्वक इस व्रतका पालन करेंगे, वे उत्तम गति पावेंगे। यह विधि रविव्रत फल लियो, मतिसागर गुणवान। दुःख दरिद्र नशो सकल, अन्त लहो निरवान॥ Am (26 श्री पुष्पांजलि व्रत कथा) नमों सिद्ध परमात्मा, सकल सिद्ध दातार। पुष्पांजलि व्रतकी कथा, कहूँ भव्य सुखकार॥ जम्बूद्वीपके पूर्व विदेहमें सीता नदीके दक्षिण तट पर मंगलावती देशमें रत्नसंचयपुर नामका एक नगर है। वहां राजा वजसेन अपनी जयावती रानी सहित सानन्द राज्य करता था, परंतु घरमें पुत्र न होनेके कारण उदास रहता था। सो एक दिन राजा जब रानी सहित जिन मंदिरमें दर्शन करनेको गया, तो वहां उसने ज्ञानसागर मुनिराजको बैठे देखा,
SR No.032856
Book TitleJain 40 Vratha katha Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipchand Varni
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2002
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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