________________ 124] श्री जैनव्रत-कथासंग्रह ******************************** लालजी! तुम हंसिया भूल आये हो, सो जल्दी जाकर ले आओ पीछे भोजन करना, अन्यथा हंसिया कोई ले जायेगा तो सब काम अटक जायेगा। बिना द्रव्य नया दांतडा कैसे आयेगा? यह सुनकर गुणधर तुरंत ही पुनः वनमें गया सो देखा कि हंसिया पर बड़ा भारी सांप लिपट रहा है। __यह देखकर बहुत दु:खी हुये कि दांतडा बिना लिये तो भोजन नहीं मिलेगा। और दांतडा मिलना कठिन हो गया है तब वे विनीत भावसे सर्वज्ञ वीतराग प्रभुकी स्तुति करने लगे सो उनके एकाग्रचित्तसे स्तुति करनेके कारण धरणेन्द्रका आसन हिला, उसने समझा कि अमुक स्थानोंमें पार्श्वनाथ जिनेन्द्रके भक्तको कष्ट हो रहा है। तब करुणा करके पद्मावतीदेवीको आज्ञा की कि तुम जाकर प्रभुभक्त गुणधरका दुःख निवारण करो। यह सुनकर पद्मावतीदेवी तुरंत वहां पहुंची, और गुणधरसे बोली___ हे पुत्र! तुम भय मत करो। यह सोनेका दांतडा और रत्नका हार तथा रत्नमई पार्श्वनाथ प्रभुका बिंब भी ले जाओ, सो भक्तिभावसे पूजा करना इससे तुम्हारा दुःख शोक दूर होगा। गुणधर, देवी द्वारा प्रदत्त द्रव्य और जिनबिंब लेकर घर आये सो प्रथम तो उनके भाई यह देखकर डरे, कि कहीं यह चुराकर तो नहीं लाया है, क्योंकि ऐसा कौनसा पाप है जो भूखा नहीं करता है, परंतु पीछे गुणधरके मुखसे सब वृत्तांत सुनकर बहुत प्रसन्न हुए और भूरि भूरि प्रशंसा करने लगे। इस प्रकार दिनों दिन उनका कष्ट दूर होने लगा और थोडें ही दिनोंमें वे बहुत धनी हो गये। पश्चात् उन्होंने एक बडा मंदिर बनवाया, प्रतिष्ठा कराई, चतुर्विध संघको चारों प्रकारका यथायोग्य दान दिया और बड़ी प्रभावना की।