SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री अष्टान्हिका नन्दीश्वर व्रत कथा [119 *************** * * * * * * * * * * * * * * * * * दशमीके दिन भी सब क्रिया आठमके समान ही करे। 'ॐ ह्रीं त्रिलोकसारसंज्ञाय नमः' इस मंत्रकी 108 जाप करे और केवल पानी और भात खावे। इस दिनके व्रतका फल साठ लाख उपवासके समान होता है। ग्यारसके दिन भी सब क्रिया आठमके समान करे, सिद्धचक्रकी त्रिकाल पूजा करे और 'ॐ ह्रीं चतुर्मुखसंज्ञाय नमः' इस मंत्रकी 108 बार जाप करे और ऊनोदर (अल्प भोजन) करे। ___इस दिनके व्रतसे 50 लाख उपवासका फल होता है। बारसको भी सब क्रि या ग्यारसके ही समान करे और 'ॐ ह्रीं पंचमहालक्षणसंज्ञाय नमः' इस मंत्रकी 108 जाप करे तथा एकाशन करे। इस दिनके व्रतसे 84 लाख उपवासोंका फल होता है। तेरसके दिन भी सर्व क्रिया बारसके समान करे, केवल 'ॐ ह्रीं स्वर्गसोपानसंज्ञाय नमः' इस मंत्रकी 108 जाप करे और इमली और भातका भोजन करे। इस दिनके व्रतसे 40 लाख उपवासका फल मिलता है। चौदसके दिन सब क्रिया उपरके समान ही करे और 'ॐ ह्रीं सिद्धचक्राय नमः' इस मंत्रकी 108 जाप करे तथा त्रण (सूखा) साग आदि शुद्ध हो तो उसके साथ अथवा पानीके साथ भात खावे। इस दिनके व्रतका फल 1 करोड उपवासका फल होता है। पुनमके दिन सब क्रिया उपरके ही समान करे केवल 'ॐ ह्रीं इन्द्रध्वजसंज्ञाय नमः' इस मंत्रकी 108 जाप करे तथा चार प्रकारके आहार त्याग करे (अनशन व्रत करे) इस दिनके व्रतका तीन करोड पांच लाख उपवासका फल होता है।
SR No.032856
Book TitleJain 40 Vratha katha Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipchand Varni
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2002
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy