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________________ 198] श्री जैनव्रत-कथासंग्रह ******************************** और नंदीश्वर द्वीपमें प्रत्येक दिपमें एक अंजनगिरि, चार दधिमुख और रतिकर इस प्रकार (13) तेरह पर्वत हैं। ____ चारों दिशाओंके मिलकर सब 52 पर्वत हुए। इन प्रत्येक पर्वतों पर अनादि निधन (शाश्वत्) अकृत्रिम जिन भवन है, और प्रत्येक मंदिरमें 108 जिनबिंब अतिशययुक्त बिराजमान हैं, ये जिनबिंब 500 धनुष ऊंचे हैं। वहां इन्द्रादि देव जाकर नित्य प्रति भक्तिपूर्वक पूजा करते हैं। परंतु मनुष्यका गमन नहीं होता इसलिये मनुष्य उन चैत्यालयोंकी भावना अपने अपने स्थानीय चैत्यालयोंमें ही भाते है। और नंदीश्वर द्वीपका मण्डल मांडकर वर्षमें तीन बार (कार्तिक, फाल्गुन और आषाढ मासके शुक्ल पक्षोंमें ही अष्टमीसे पूनम तक) आठ दिन पूजनाभिषेक करते हैं, और आठ दिन व्रत भी करते हैं। अर्थात् सुदी सातमसे धारणा करनेके लिये नहाकर प्रथम जिनेन्द्र देवका अभिषेक पूजा करे, फिर गुरुकेपास अथवा गुरु न मिले तो जिनबिंबके सन्मुख खडे होकर व्रतका नियम करे। ___ सातमसे पडिमा तक ब्रह्मचर्य रक्खे, सातमको एकासन करे, भूमिपर शयन करे, सचित्त पदार्थोका त्याग करे। आठमको उपवास करे, रात्रि जागरण करे, मंदिरमें मंडल मांडकर अष्टद्रव्योंसे, पूजा और अभिषेक करे, पंचमेरु की स्थापना कर पूजा करे, चौवीस तीर्थंकरोंकी पूजा जयमाला पढे, नंदीश्वर व्रतकी कथा सुने और 'ॐ नंदीश्वरसंज्ञाय नमः' इस मंत्रकी 108 बार जाप करे। ____ आठमके उपवाससे 10 दश लाख उपवासोंका फल मिलता है नवमीको सब क्रिया आठमके समान ही करना, केवल 'ॐ ह्रीं अष्टमहाविभूतिसंज्ञाय नमः' इस मंत्रकी 108 जाप करे। और दोपहर पश्चात् पारणा करे। इस दिन दश हजार उपवासोंका फल होता है।
SR No.032856
Book TitleJain 40 Vratha katha Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipchand Varni
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2002
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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