________________ पुराण स०सि० भूमिका पृ० 34, नि० सा० 102 212. ह० पु० 58/5-6. प० पु० 6/282 213. भा० द० पृ० 270 214. त० सू० 1/6 215. ह० पु० 58/266, त० सू० 6/1 216. ह० पु० 58/296 217. ह० पु० 6/35, आ० पु० 16/176-180 218. ह० पु० 58/136-137 216. पं० च० (स्वयंम्भू) 36/4/1-11, भा-२, ह०पु० 2/116-121, आ०पु० 20/156, 10/163 . 220. आ० पु० 20/161, ह० पु० 58/126 221. आ० श्रु० 1/3/3 222. ह० पु० 58/138, 3/116-120 223. जै० ध० पृ० 16, आ० पु० 41/110 224. आ० श्रु० 1/3/3 225. द० वै० 7/11-12 226. आ० पु० 20/162, ह० पु० 58/130 227. ह० पु० 58/136 228. ह० पु० 58/131 226. उ० सू० 16/26 230. आ० पु० 20/163 231. प्र० व्या० 3/6 232. ह० पु० 58/140 233. प० च० (स्वयम्भू) 4 भा० 2 46/14-1-10, आo पु० 20/164, सू० कृ० 3/6/23. 1/15/6, उ० सू० 16/3-4 234. प्र० सं० द्वा० 4/1 उ० सू० 22/40 235. ह० पु० 58/141 236. आ० पु० 20/165, सू० कृ० 1/1/2 237. हा० पु० 58/142 238. ह० पु० 2/122-126 236. ह० पु० 2/127 - खड़े होकर दोनों भुजाओं को नीचे की और लटकाकर, पैर के दोनों पंजों को एक सीध में चार अंगुल के अन्तर से रखकर साधु के निश्चल ध्यान में लीन .