________________ 68 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास 182. प० पु० 6/41, 70, 66/61-64 183. प० पु० 6/356-423. रघुवंश 6/12-86, प०च० (स्वयंम्भू) 21/1-10 , 184. आ० पु० 37/35-37, प० पु० 48/3 185. एरि० जिल्द 6 पृ० 251, आ० पु० 26/32 186. प० पु० 8/373, 65/31 187. प० पु० 38/6-10 188. बृह० क०. भा० 4/4658, कुस जातक 531 186. प० पु० 44 160. प० पु० 6/163 161. प० पु०५/६०-१०१. 162. प० पु० 41/72-76 163. प० पु०५३/१४६-१४७. प० च० (स्वयंम्भू) भाग 3. 51/5/1 164. प० पु० 48/45 165. आ० पु० 24/175, 177. 176 प०च० (स्वयंम्भू) 47/3/6 166. नी० वा० 24, 10 और 25 167. अ० पु० 64/123 168. जै० सि० ए० पृ० 201, 202, आ० पु० 24/1-28, मे० जै० पृ० 266 166. पु० जै० म० अं० जिल्द 26 नं० 1 पु०६ 200. 50 पु० 24/130, प०च० (स्वयंम्मू) 21/4/1, भाग 3, 48/8/1-2 201. बा० पु० 24/175 202. ना०प्र०प० भा० 2, पृ० 80-85 203. प०च० (स्वयंम्भू) 51/8/1-16 . 204. प०पु० 261-6, 68/1-22 अष्टविधि पूजा - जल, चन्दन, अक्षत, पुष्प (पीले चावल) नैवेद्य, धूप, फल, दीप / इसके साथ ही इन सब चीजों को मिलाकर अर्ध्यचढ़ाया जाता था जो जैन धर्म की अपनी विशेषता है। 205. प० पु० 16/76, 16/82, 83 / 206. प० च० (स्वयंम्भू) 56/8/1-4, 38/10/1-6, भाग 2. 207. प० पु० 2/86-87, आ० पु०५/२० 208. प० पु० 6/286 206. भा० द० पृ० 270 210. 20 क० श्रा० आ०२ 211. त० सू० 1/1 पर सर्वार्थसिद्धि टीका, र०क० श्रा०आ०३ , पृ० 80-85