________________ 100 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास होने को कायोत्सर्ग कहते हैं। 240. ह० पु० 2/126 241. आ० पु०. 20/456-471, ह० पु० 6/101-110, 60/10 242. प० च० भा० 2 4/1-11 243. ह० पु० 64/27-32 आ० पु० 18/67-68 244. ह० पु० 64/21-26 245. आ० पु० सा० अ० पृ० 161 246. आ० पु० 36/146-150 247. आ० पु०२/२२५, 18/2 248. स्टडीज इन जैनिज्म पृ० 58, 56, ह० पु० 6/135 246. ह० पु० 3/188-186 250. ह० पु० 2/58 251. आ० पु० 26/58-64, 70-71 252. भ० गी०६/१४ 253. आ० पु० 21/134 254. आ० पु० 21/168 255. ह० पु० 64/27-28 256. प० पु० 14/183, आ० पु० 10/162 . 257. प० पु० 14/184-164, प०च० 36/4/1/11, आ० पु. 10/163 258. प० पु० 14/168, आ० पु. 10/165 256. ह० पु० 58/144-152, 2/130 / 260. ह० पु० 58/161, आ० पु. 10/166, प० पु० 14/166 261. प०च० भा० 2 34/1 262. प० पु० 24/200-201, ह० पु० 58/158 263. ह० पु० 58/160 264. आ० पु. 10/156-161, जैन धर्म, पृ० 186-66, जैनधर्म का योगदान पृ० 213-214 265. ह. पु०२/१३२ पृ 63/78 266. जैनधर्म का योगदान पृ० 266-70 267. ह०पु० 63/61 268. आ०पु०५/२४५ 266. य०च०इ०क०० 266-70 270. आ०पु० 38/26 / 23/113-36, 24/28, 23/76 में चकवर्ती द्वारा की