________________ कवि हेमरतन कृत गोरा वादल पदमणी चउपई [पहलो खंड] // दूहा // 'सुख संपति दायक सकल', सिधि बुधि सहित गणेस'। विघन विडारण 'विनयसुं, पहिली तुझ प्रणमेस" // 1 // ब्रह्मा विष्णु शिव सर मुखर', नितु समरहूँ जसु नाम / ते देवी सरसति तणा, पद" युगि करुं प्रणाम // 2 // पदमराज वाचक' प्रभृति, प्रणमी निज' गुरु पाई। केळवस्यु साची कथा, काँणि न आवई काई॥३॥ मवरस दाखई नव-नवा, सयण सभा सिणगार' / कवियण मुझ करियो कृपा, वदताँ वचन विचार // 4 // वीरा रस सिणगार' रस, हासा रस हित हेज। सामि धरम-रस सॉभल', 'जिम हुइ तनि अति तेज // 5 // सामि-धरम जिणि साचवि, वीरा रस सविसेष / सुभर्टी महि सीमा लही, राखी खित्रवट रेख // 6 // // 1 // 1 सकल सुखदायक सदा / / 2 गणेश B| 3 मुख-करन B, रिधि करण / / 4 पहिलं B, पहिलो , पहिलि D / ५प्रणमेश B, प्रणमेस। // 2 // 1 ब्रह्मा / 2 विष्नु / / 3 सइ , सै / / 4 मुखि 0, मुखें / / ५समरइ B, समरे / ६जस / 7 नाम B / 8 तेण B, तिण / / 9 सरसती / 10 तणे / 11 पय / 12 युग B, जुग / / 13 प्रणाम BI // 3 // १वाचिक.BI 2 प्रमति / / 3 प्रणमुं / 4 सद।। ५पाय BCE | 6 केविसं B, केळविसु, केळवताँ / 7 काणि BO, तथा / 8 लागे / 9 काय BCE | // 4 // १दाखह BO, दाखै छ। 2 शिणगार B| 3 करिजो B, करिज्यो / 4 वयण / // 5 // १सिंगार / 2 साँमि B, साम , साँम। ३ते , विधि / 4 संभलु A, संभल , साँभलो / / 5 ज्यं वा तन तेज। ॥४६॥सील साच जगि भाषिई, जसु प्रसाद मुख होह। पदमणि जिणपरि पालियो, साँभलियो सहु कोड / / E6 // // 3 // १सांम।। 2 जिम, जा।। 3 साचिन्यउ BO, साचल्यो / / 4 सुविशेष B, सविशेष / / ५सुमडाँ B, मुहडाँ। माँहि BC, मै / ७सोमा / .