________________ समो] . गोरा बादल पदमिणी चउपई तुं मायउ ढीली थी' घसी, हिव मत जाई पाछउँ खिसी। सूर अछातः करि संग्रॉम, नहि तरि रहसी नहि तुझ मॉम" // 586 // मालिमना चडिया असवार', 'जिम-दल सरिखा जोध झुझार। मिडई भली परि भारथ भीम', सुभट न चापइँ पाछी सीम // 587 // धसबस धूलि विधूसई धरा, माहोमाहि भिडइँ आकरा / खेहा उंबर ऊडिउ खर', 'सूझइ सूर नही पाधर // 588 // बाण बिटई बिहुँ' दिसि घणा, वाजहं लोह घणा साँधिणा / खडग विछ्टइ' करता खीज, जाणि कि बादलि झबकई बीज // 589 // // 56 // 1 से D / 2 पाछो , पाछौ / / 3 अछै / / 4 तो 0 | ५"तुझ धिप मांम B0, नहीत जासी ताहरी मांम DIF प्रतिमें नहीं है। // 587 // 1 आलिम इम चढियो असिधार BCD, आलम ताम हुआ असवार / 2 जिमिदिमि"BOD, जम जेहा मूगल झंझार / 3 भिड्या खाग रिण मचियो दूठ, सुभट न दाखै कोई पठन // 5881 विधसै DI 2 मिलइ BC, मिलै D / 3 ऊड्यउ B, उड्यो , उड्यौ / 4 खरो , खरी D, इसौ / ५...पाधरो 0, सूझै...पाधरौ D, सूरिज पान वधूल्या जिसौ (1) / A568 / B645 / 0653 | D701 / B783/1 // // 59 // 1 विछूटै DB | 2 चिहुं / / 3 बाजे...D, रूडै नगारा सींधू तणा 783/2 / 4 खगा / 5 विछटै D / 6 वि B / 7 चमकी प्रतिमें :-खडग भलक्कै ऊजलधार, जाणिक बीजुल घण अधार / सन्नाहै तूटे तरवार, जागै जाल-अगनि अणपार // 784 // कुंत अणी फूटै सुसरा, तूटै कालिज ने फीफरा / ऊ. बूर वहै रत-खाल, गूंजै सीगणि गुण असराल // 785 // वहै तीर चणणाट पंखाल, झडमातौ तातौ रिणकाल / पडै मारि गूरज गोफणी, फोजां फूटै तूटै अणी / / 786 / / मारि मारि कहि वाहै लोह, रिणलूधा सामंत सछोह / खान निवाब गडूथल खाइ, हजरत करै खुदाइ खुदाइ // 787 // नारद किलकै करि करि हास, गिरझणि मांस तणा ले ग्रास / धड ऊपरि धड ऊथलि पहै, किता कमंध कंध विण लडै / / 788 / / रिणचाचरि नाचै रजपूत, धुंकल नाचवियो रिणधूत / धनि-धनि कहि सूरिज धीरवै, अपछर वरमाल कंठ ठवै // 789 // ऊपरि सुर तेत्रीसां साथ, देखे रांणीजायां हाथ / सामंत सांम्है लोहै लहै, असपति हाथै नवि ऊपडै // 790 // वलि कहै वादिल,"सुणि पतिसाह ! तुम्हको पदमिणकी है चाह / सो तो रतनसेनके हाथ, हमसे दी नहि जायै नाथ // 791 // देखो झिलमिल खग-दामिनी, हाथ हमारे ए पदमिनी। अहनिस तुम्हकुं करती याद, चाखण असुर-रगतका स्वाद // 792 // सो तो हाजर कीधी आणि, कही हती मैं तुम्हसै वाणि / इस पदमिणका इहै सुभाव, पहिली मारै विष-कन्याव / / 793 // पछै अमरपुर हाजर करे, जहां अपछरा सेवा करै / उस पदमिनथें इह पदमिनी, हमको प्यारी लागै घणी // 794 // जिस खातर तुम्ह आए अही, सो तो पदमिण गढमें रही। ऐसा क्या तुम्ह महुरत लिया, कहँ ओ बांभण जिण तुम्ह दिया / / 795 / / पूछौ फिरि कहँ राघव व्यास, उसने किया तुम्हारा हास। तुम्ह हो अल्लाके फिरस्ते, पांच निवाजु गुदारावस्ते // 796 // सेवा समरण करते सही, अब खुदाई कहँ छिपि रही। राघव कहां गया सैतान, उसके घर पदमिण असमान / / 797 / / 12