________________ कवि हेमरतन कृत बहोत रूप खूब भणी, उह सिंघलकी है पदमिणी / उसकुं रक्खहुं तुम्ह अवास, हजरत चेला बैगा म्यास" // 798 // इण परि मोसा बोले घणा, हलकारे सामंत आपणा। कोटि चब्या जोवैराजान, पदमिण धै आसीस प्रधान // 799 // कोटि चच्या जोवै सब लोह, जैत जैत भाषै सहु कोइ / मुंगल सुहह लथोबथ होय, गज जेठी नवि भाजे कोर // 800 // अपछर हर करै आरती, जोगिण पत्र भरै मदमती। रुद्र करै गूंथी रुंडमाल, रथ-थंभ्यो देखे किरणाल / / 801 // धड बेहद करि मुंगल तणा, ढीग करकड मचिया घणा / आवट फूट ह्यौ रिण इसा, असुरां प्रलैकाल सारिसौ // 802 // वादलडो है रिण दरियाव, मांड्या वासिग नै सिर पाव / जीभ वही जिणपरि रिणकाज, वाहै हाथ दुणा तिण लाज / / 803 // बड़ा पर मद सेर जवाण, पोरस रस भरियो अभिमाण। वाहै इसौ निचीतौ रूक, हेके घात करे दोइ टूक // 804 // दूहा-उत आलम तोबा कहै, इत हलकारे रांण / त्यां वेला वादल तणा, अडिया भुज असमर्माण // 805 : करि सींधू दहा कहै, तिण वेला कवि 'पात'। सूरां सूरातन चडै, वदै बिन्है दल वात // 806 // कुण तोलै जल साइरां, कुण ऊपाडै मेर / वादल तो विण साहसिउ, कुण झालै समसेर // 807 // दलां विभाडण साहरां, ऊपाडण गयदंत / तुज्झ भुजां गाजणतणा, बलिहारी बलवंत // 808 // जावे असपति रीझियौ, सुहडां खमी सबाब / खागै खान निबाबरी, तें ऊतारी आव // 809 // हसियौ आलम जाब सुणि, खग खसियो खित्रखार / तुं वेधालग वादला, अंगदरो अवतार // 810 // बाका खान निबाबरा, फाटा ऊबा केह / वाका सुणिया जगसिरे, वाजंते डाकेह // 811 // महि डोले सायर सुखै, पच्छिम ऊगे भांण / वादल नेहा सूरमा, क्यु चुक्कै अवसांण / / 812 / / रिणडोहै फिरि फिरि खलां, धडां ध्रपावै धार / पारीखै पडिहार परि, न भूलै मनुहारि // 13 // तब गोरो रावत कहै, "सुणि, वादल भत्रीज / खागै खडियौ खेतरिण, हिव वावां जस-बीज / / 814 // गढपति साही वींदणी, मद जोवण मैमंत / मुझ मन परणेवातणी, खरी बिलग्गी खंत" // 815 // "सुणि गोरा!" वादल कहै, “तुं सामंत सकाज / तुं दल-नायक हींदुआं, तुम मुझे रिणलाज / / 816 // तुं सिंघ चारण सूरिमा, अजुआलण कुलवट्ट / तुं बांधे पतिसाहसुं, पैतौडर रिणव / / 817 // बांधौ मौड महाबली, बांधौ असि गजगाह / सिर तुलछीदल घालियां, दहियां खाग दुबाह" // 818 // केसरियां वागा किया, भुज डंबाणै खाग / जांणि क भूखो केहरी, झुडमा न्हाँखै झाग / / 819 // सूरिज हूंत सलाम करि, वलि बलि मूछां घालि / सुरपति साहां समचडै, आयो सडलग झालि // 820 // भरे डणि दाइ बाण भति, राम राम मुखि रहा। अकलतै रिण ओपियौ, माझी लोह मरः // 821 / / कडे नगारा सींधुआ, रिडै सुरातन रस्स / मदि आयो गोरो मरद, अडियौ सीस अरस्स / / 822 // आवे असपति आगलैं, इसो उढायौ खाग / पाधरि पाखल पाथरे, जांणिक हणमंत वाग / / 823 // करि हाका किलकै हस, डस रिमां जिम नाग / तिण वेलां त्रिजटा हथौ, दीयै अदंगा दाग / / 824 / / पक्कै दीहै गोरिलो, दियै रिण पक्का दाव / पक्का खान निवाब सिर, परै पकंदा घाव / / 825 // म्यां घटि सूरातन नही, त्यां जोवन अप्रमाण / केहरि पंचासै हुयै, तौ ही सेर जुवाण // 826 // आडा खल भांजे अनड, फुरलंतो गज भार / आयौ असपति ऊपरै, मुख कहतौ हुसियार // 827 / / तोले खग तारा लगे, गोरै कीधौ घाव / असपतिजीव उवेलवा, पाछा दीधा पाव / / 828 // कहै वादल "गोरा सुणी, सका एह सुभाव / आपा आंगमी आप छ, कुण राजा कुण राव // 829 // सोनै रिणवाही घणी, वदसी जगत वसेख / दीलेसर परमेसवर, त्यां सुं केहो तेष" / / 830 // घट घट नै जै घाव करि, लडै भिड ले बोह / गोरो रिणवट पोढियौ, वाहि वहाव लोह // 831 // खमा-खमा कहि अपरा, हरि औडै सिर हाथ / गिलै टला भख ग्रीधणी, भुजां वदै दिन नाथ // 832 // आवै वादल ऊपरै, करै हथाली छांह / दिलिपति साहे डोहिया, भांगी तुज्झ भुजांह // 833 / / भइयौ सूरातन तणौ, अजै अँतमांण अथाग / भुज बेवे रूंध्या भला, इक मूछां इक खाग / / 834 // मुख देखे काका तणी, वांदै मूछों वाल / वादल आयौ साहसुं, चौरंग बांधै चाल / / 835 // हलकारे भह आपरा, वाकारे रिभ थाट / पडियौ कांसै वीज परि, झाडतो खग झाट / / 836 // लोह चकारौ ऊडवै, इसा लगाया हाथ / पाप रखै तव छाडियो. सारो असपति साथ // 837 // रहया वै सारा रवद, ऊभो असपति आप | जांणि विखेरचौ वानरे, करि गुंजाल ताप // 838 //