________________ 71 नोमो] - गोरा वादल पदमिणी-चउपई ते तु अरि-दल भंजसि कॅम"? वलत' बादिल जंपई ऍम / "सुणि सुंदरि! तुं म करे हेज, तिणि दिनि आविसु तुझनी सेज // 464 // जिणि दिनि जीपिसुं वयरी एह, त हुँ रमस्युं रंग सनेह / ताहरी वात कही तई सही, पिण हिव रमल करुं ए वही // 465 // ताँ लगि सेज न हेज न नेह, आलिम भाँजि करुं नहि खेह / ताहरई' वचनें भाजउ आज, गाजननंदन आवइ लाज // 466 // वलती' नारि पयंपई वली, सूरिम सगलइ तनि ऊछली। "भलइँ ! भलइँ ! सॉमी स्यावासि', भवि-भवि हुँ छु' थारी दासि // 467 // जिम बोलइ छइ तिम निरवहे', मत किणि वातइ जायइ ढहे। लाज म आणइ कुलि आपणइ, सॉमी झुंचे साहसि घणई // 468 // नेजइ घाउ करे नरनाथ, देखिसु हिवइ तुहारा हाथ / खडग प्रहार खरा चालवे, आयुध अंगि घणा झालवे // 469 // // 464 // 1 बलतो , बलतौ / 2 बादलि BODI 3 जौ / प्रतिमें नहीं है। // 465 // १जीपसी BODI २वरी BC | 3 तोल, तो DI 4 DIL प्रतिमें नहीं है। // 466 // 1 ताहरै DI 2 भाजु DIA 447 / / 504 / / 514 / D545 / प्रतिमें-असपति घढा विसम वींदणी, भमुंह चढावी मेले अणी / जरह कचुंकी भीडित अंग, विलकुल मुख चख राते अंग / / 625 // मल्हपै भयमंत नारी जेम, वचन विरस चित न धरे पेम / अमंगल सींधू नद गावती, छल धरती टाकुल वावती / / 626 / / असपति गढ छै एहवी रंस, खोटी मन मै म घरो हुंस।। तेह सरिस रंग रहसी केम, प्रिय बालक त्रिय प्रौढा जेम / / 627 // भिडसो रिण बलि दाखो तेम. वलतो वादल पै ऍम / सुणि सुंदरि ! तुंम करिस खेद, मुज्झ वचन माने धू-वेद / / 628 // पोरस तणो दिखालिस तेज, तिण दिन आविस ताहरी सेज / जा लगि प्रियजन वखानै नही, गुणीयण विरद न चै उमही / / 629 // तां लगि केहा सूर सधीर, वल्लभ माने जेह सरीर / लोही साटे चाडै नीर, ते कुलदीपक बावन धीर / / 6.30 // तब नारी जंप कर जोडि, अवर नही कोइ ताहरी जोडि / भलो भलो कहसी संसार, साम-धरम रहसी आचार / / 631 // // 467 // १वलतुं AI 2 पयंपै / / 3 सगलै DI 4 साबासि BCDI ५छउं BC, E प्रतिमें नहीं है। // 468 // 1 बोले DE | 2 छै DB | 3 निरवाहि BCD | 4 वातै DE | 5 जायै DE | 6 ढाहि BCD I ७आपणै DE | 8 अझै BODE | 9 घणे DET E633/1 // // 169 // 1 नेजै DE | २...हिवै...D, जिम हुँ देखू ताहरा हाथ E / 3 आउध BODI द्वितीय अख़्ली : में नहीं है। इसके आगे BOD प्रतियोंमें कुंडलिया कंता जूझसि कवणि परि, किम करवार गहंति / देखसि दृढ मनि अंगरी, किम तुं प्री चाहंति / किम तुं प्री चाहंति, तिख्य खग्गल रिण छूटइ। खग्ग-ताल वाजंति, तेज अंधाधड तूटा / मनप्रिय कायर होइ तुं, देखि मयगल मयमंता। तव मुझ लज्जा होइ, जूझि जव भाजह कंता //