________________ बिगडा?' यह भाव अनंतानुबंधी कषाय का है / वह सम्यग्दर्शन का नाश करता है / ___(ii) अप्रत्याख्यानीय कषाय :- इस में 'छोटे-बडे पाप अकर्तव्य है' इतना तो समझता है, किन्तु इनमें किसीका भी प्रतिज्ञाबद्ध त्याग (प्रत्याख्यान-पच्चक्खाण) करने का वीर्योल्लास नहीं होता है / अतः देशविरति रुक जाती है / (iii) प्रत्याख्यानीय कषाय :- इसमें सर्वथा पापत्याग की प्रतिज्ञा नहीं, किन्तु अंशतः त्याग होता है व अंशतः त्याग (प्रत्याख्यान) पर आवरण रहता है / इससे सर्वविरति-भाव रुकता है / (iv) संज्वलन :- इसमें सर्वथा पाप-त्याग का पच्चक्खाण होने पर भी अल्प मात्रा में राग-द्वेषादि कषाय स्फुरायमान रहता है / यह वीतराग भाव को रोकता है / वीतरागभाव में मोक्ष, संयम, ब्रह्मचर्य आदि पर भी राग नहीं एवं संसार -असंयम आदि पर भी राग नहीं, बिलकुल रागमुक्त दशा है / (4) योग : चौथा आश्रव है योग / आत्मा के पुरुषार्थ से होने वाली मनवचन-काया की प्रवृत्ति को 'योग' कहते हैं / वे शुभ भी होते है, एवं अशुभयोग भी होते हैं; जैसे कि (1) सत्य मनोयोग या सत्य वचनयोग यह शुभ योग है / (2) निष्पाप यथार्थ विचार या वचन,