________________ विवरण इस प्रकार है : हम पहले देख चुके हैं कि पृथ्वी (मिट्टी, पाषाण, धातुएँ आदि), जल, अग्नि, वायु, वनस्पति आदि पुद्गल उन-उन जीवों के द्वारा ग्रहण किए गए शरीर रूप है / जब जीव मरता है तब शरीर रूपी पुद्गल को छोड़कर जाता है / फलतः वह शरीर-पुद्गल निर्जीव, अचेतन, अचित्त बन जाता है / अब इस पुद्गल को यथास्थित रूप में अथवा टूटे-फूटे या परिवर्तित रूप में यदि जीव आहार कर के ग्रहण कर लेता है तो वह पुनः सजीव सचित्त, सचेतन हो जाता है / फिर जीव इसे छोड़कर जाता है तब यह पुनः निर्जीव या अचित्त बन जाता है / यों अनादि- काल से यह प्रक्रिया चली आ रही है / जीव पुद्गल को आहाररूप में ग्रहण कर शरीर रूपेण धारण करता है, बाद में इसे छोड़कर दूसरे भव में अन्य पुद्गलों से शरीर का निर्माण करता है / परमाणु : उस पुद्गल-द्रव्य के सूक्ष्मातिसूक्ष्म अंश को अणु या परमाणु कहते हैं / जब दो परमाणु इकट्ठे होते हैं तो द्वयणुक- द्विप्रदेशीय स्कंध, तीन मिलें तो त्र्यणुक-त्रिप्रदेशिक स्कंध, चार मिलने पर चतुरणुक-चतुःप्रदेशिक स्कन्ध,... इस प्रकार संख्यात अंश मिले तो संख्यात प्रदेशिक, असंख्यात मिले तो असंख्यात प्रदेशिक, और अनंत मिल तो अनंत प्रदेशिक स्कन्ध बनते हैं / सर्वज्ञ की दृष्टि से दृश्य 838