________________ (7) अरुपता नामकर्म | शरीर, इन्द्रियाँ, वर्णादि चार, त्रस-स्थावरपन, यश, अपयश, सौभाग्य दौर्भाग्यादि / (8) अगुरुलघुता | गोत्रकर्म | उच्चकुल-नीचकुल (14) (2) अजीव तत्त्व पुद्गल की 8 वर्गणा : नवतत्त्व में दूसरा तत्त्व है अजीव तत्त्व / जिसमें चैतन्य यानी ज्ञान का स्वभाव नहीं वह अजीव हैं / पहले छः द्रव्य के प्रकरण में बताया गया है कि अजीव में चार अस्तिकाय द्रव्य व पांचवाँ कालद्रव्य आता है, उनका वर्णन पूर्व में किया गया है / उनमें से पुद्गल द्रव्य का वर्णन अब किया जाता है / / जीव में मिथ्यात्व, अविरति (व्रत का अभाव), क्रोधादि कषाय, प्रमाद और मन-वचन-काया के योग के कारण जीव के साथ जो कर्म चिपकते हैं वे कर्म जड़-पुद्गल हैं / पुद्गल की मुख्यतः आठ प्रकार की उपयोगी वर्गणाएँ यानी स्कन्ध हैं / उन में से आठवीं कर्मवर्गणा से कर्म बनते हैं / पुद्गल की उन आठ वर्गणाओं का 2 828