________________ आश्रय स्वतंत्र द्रव्य चाहिए, वह है जीव द्रव्य / अजीव पुद्गल द्रव्य में वर्ण, गंध, रस, स्पर्श गुण होते है / वे संवेदन रूप में (स्फुरणा रूप में) अनुभूत होते नहीं है / अतः वे जीव के गुण नहीं / ज्ञान, इच्छा, भावना, सुख-दुःख का स्फुरण यानी संवेदन होता है, अतः ये जीव के गुण है / गुण-शक्ति-अवस्था कहीं भी आश्रित होते है, अतः उनका आश्रय 'द्रव्य' है / जीव में दो प्रकार के गुण है:- स्वाभविक गुण, औपाधिक गुण / स्वाभाविक अर्थात् जीवद्रव्य के साथ सहज रूप से जुड़ा हुआ; जैसा कि चैतन्य-ज्ञान-सुख-वीर्यादि / औपाधिक अर्थात् आगन्तुक, यानी कर्म आदि किसी संयोग से नये उत्पन्न होने वाले / जैसे-राग-द्वेष, हास्यकाम-क्रोध आदि / जीव का स्वाभाविक गुण ज्ञान है; यह कितना जान सके? जैन धर्म में बताया है कि ज्ञान अनन्त द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव को जान सकता है; हाँ; मूल स्वभाव 'ज्ञान' पर से सब आवरण नष्ट होने चाहिए / तब जीव सर्वज्ञ-सर्वदर्शी बनता है / सर्वज्ञता में प्रमाणः- अब जब ज्ञान जीव का स्वभाव ही है, स्वाभाविक गुण है, तब विचारणीय यह है कि क्या यह ज्ञानगुण मर्यादित है? अर्थात् क्या यह मात्र अमुक ही ज्ञेय-हेय आदि विषय को जानता है? अथवा समस्त ज्ञेय-हेय आदि विषयों को जान सकता है? क्या ज्ञान में उतनी जानकारी हो सकती है? हाँ, ज्ञानगुण को