________________ छट्ठा कहता है :- 'कुछ भी तोडो मत, नीचे गिरे हुए जामुन खाओ' इसकी शुक्ललेश्या / (13) जीव का मौलिक और विकृत स्वरूप ऐसा नहीं माना जा सकता कि जीव और जड़ ये समान स्वभाववालें हैं; अन्यथा यदि ऐसा हो तो जीव कभी स्वयं जड़ रूप और जड़ कभी स्वयं जीव स्वरूप क्यों न हो जाए? कहना पडेगा कि दोनों का स्वभाव भिन्न भिन्न है / जीव कभी भी जड़ नहीं बनता, जड़ कभी भी जीव नहीं बन सकता / जीव के मूल स्वरुप में अनंत ज्ञान है / जीव का ज्ञान-स्वभाव ही उसे जड़ द्रव्य से अलग स्वतंत्र द्रव्यरूप में सिद्ध करता है / यदि ज्ञान जीव का मूल में स्वभाव न हो किन्तु आगन्तुक गुण हो, तो किसी भी बाह्य तत्त्व में ऐसी शक्ति नहीं कि इसमें ज्ञान प्रकट करे / अन्यथा जड़ बाह्य तत्त्व जड़ में भी जीव की तरह आग-न्तुक ज्ञानगुण क्यों उत्पन्न न कर सके? जिस में चैतन्य गुण है वह जीवद्रव्य है / जिस में यह नहीं, वह जड-द्रव्य है / 'मैं जानता हूँ, लेकिन वह शरीर को नहीं किन्तु शरीरान्तर्वर्ती जीव-आत्मा को होता है / इसलिए मृत्यु होने पर जीव शरीरमें से निकल जाने के बाद शरीर में कुछ भी ज्ञानादि संवेदन होता नहीं है / चैतन्य ज्ञानादि का स्फुरण है-संवेदन है, इसका