________________ रूप में शरीर का निर्माण करता है / इन में से तेजस्वी पुद्गलों से इन्द्रियाँ बनाता है इससे क्रमशः शरीर-पर्याप्ति, इन्द्रिय-पर्याप्ति उत्पन्न होती है / प्रतिक्षण आहार ग्रहण करने का, शरीर बढ़ाने का और इन्द्रियों को बनाकर दृढ करने का काम जारी रहता है / अंतर्मुहूर्त (दो घड़ी के भीतर के समय) में शरीर व इन्द्रियां तैयार हो जाती हैं / तब श्वास के पुद्गल ग्रहण कर श्वसोच्छवास की शक्ति (पर्याप्ति) गृहीत होती है / एकेन्द्रिय जीव को इतना ही होता है / अर्थात् इसे चार ही शक्तियाँ यानी चार ही पर्याप्ति होती है ! जबकी द्वीन्द्रिय जीवों को रसना (जीभ) की भी प्राप्ति होती है, अतः वे भाषा के पुद्गल ग्रहण कर उन्हें भाषा रूप में परिणत करने की शक्ति-पर्याप्ति पैदा करते हैं / संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव मन के पुद्गल लेकर उन्हें मनरूप में परिणत करने की शक्ति पैदा करते हैं / यह शक्ति ही पर्याप्ति है / इस प्रकार आहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छवास, भाषा और मन, ये छ: शक्तियाँ यानी पर्याप्तियाँ पुद्गल के आधार पर उत्पन्न होती हैं / ‘पर्याप्त' जीव अपने पर्याप्तनामकर्म के बल पर अपने योग्य समस्त पर्याप्तियों को उत्पन्न कर लेता है / 'अपर्याप्त' जीव वह है कि जो अपर्याप्त नाम-कर्म के कारण पर्याप्तियों की पूर्ण उत्पत्ति करने के पूर्व ही काल का ग्रास बन जाता है / जो ‘पर्याप्त' जीव हैं वे इसके बाद जीवन पर्यंत पर्याप्ति के बल पर आहार का ग्रहण और परिणमन कर शरीरादि का पोषण आदि करते है / 0 71