________________ यही विलक्षण द्रव्य स्वतन्त्र आत्मद्रव्य है / (2) जब तक शरीर में यह स्वतन्त्र आत्मद्रव्य मौजुद है तब तक ही खाए हुए अन्न के रस, रुधिर, मेद आदि केश, नख आदि परिणाम होते हैं, मृतदेह में क्यों सांस नहीं? क्यों वह न तो खा सकता है? और न जीवित देह के समान रस, रुधिरादि का निर्माण कर सकता है? कहना होगा कि इसमें से आत्मद्रव्य निकल गया है इसीलिए / (3) आदमी मरने पर इसका देह होते हुए भी कहा जाता हैं कि "इसका 'जीव' चला गया / अब इसमें 'जीव' नहीं है / " यह 'जीव' ही आत्मद्रव्य है / (4) शरीर बढ़ता है, घटता है / किन्तु शरीर के बढ़ने घटने से ज्ञान, इच्छा, सुख-दुःख, क्षमा, नम्रता आदि किसी के भी घटने बढ़ने का नियम नहीं है / यह इस बात का प्रमाण है कि ज्ञानादि शरीर के धर्म नहीं, परंतु वे आत्मा के धर्म हैं / (5) शरीर एक घर के समान है / घर में रसोई, दिवानखाना, मालिक स्वयं घर नहीं है / वह तो घर से पृथक् ही है / उसी प्रकार शरीर को पाँच इन्द्रियाँ हैं परन्तु वे स्वयं आत्मा नहीं हैं / आत्मा के बिना आँख देख नहीं सकती, कान सुन नहीं सकते, और जिह्वा किसी रस को चख नही सकती / आत्मा ही इन सब को कार्यरत रखती है / शरीर में से आत्मा के निकल जाने पर इसका 0 608