________________ अब आश्रव नीक के आगे 'संवर' का ढक्कन लगाया जाए तो जीव सरोवर में नया कर्मकचरा आना बन्द हो जाता है / एवं 'निर्जरा' - तप का ताप दिया जाए तो पुराने कर्म सूख कर नष्ट होते चलते है-वह है 'निर्जरा' / इस प्रकार कर्म सर्वथा नष्ट होने से, व नये कर्म आना रुक जाने से, जीव-सरोवर सर्वथा निर्मल हो जाता है, यह है 'मोक्ष' / उपरोक्त छ: के साथ ये तीन तत्त्व संवर-निर्जरामोक्ष मिलने से 9 तत्त्व होते है / इन नौ तत्त्व की श्रद्धा करनेवाला जीव सम्यग्दर्शन पाता है, उस का अर्थ पुद्गल-परावर्त काल के भीतर-भीतर अवश्य मोक्ष होता (10) जीव-द्रव्य : आत्मद्रव्य स्वतंत्र है इसके प्रमाण प्रश्न :- क्या जगत् में जड से सर्वथा भिन्न स्वतन्त्र चेतनआत्मद्रव्य है? इसके अस्तित्व में प्रमाण है? उत्तर :- हाँ, स्वतन्त्र आत्मद्रव्य है व इसमें एक नहीं अनेक प्रमाण है, (1) ज्ञान, भ्रम, इच्छा, सुख-दुख, राग-द्वेष, क्षमा, नम्रता आदि चैतन्यमय धर्म हैं, जो वर्ण-रसादि से सर्वथा विलक्षण है / इनके आधार के रूप में जड से विलक्षण कोई द्रव्य होना ही चाहिए / 59