________________ 8. निर्जरा एकमेक (एकीभूत) होना / कर्म की निश्चित होती हुई प्रकृति (स्वभाव), स्थिति (काल), उग्र मंद रस, और प्रदेश (दल-प्रमाण), ये भी बन्ध है-, प्रकृति बन्ध, स्थितिबन्ध आदि कर्म का ह्रास करनेवाला बाह्य-आभ्यंतर तप, जैसे कि-उपवास, रसत्याग, कायाक्लेश आदि बाह्य तप है / और प्रायश्चित्त, विनय, वैयावच्च (सेवा), स्वाध्याय, ध्यान आदि आभ्यंतर तप हैं। जीव की कर्मसम्बन्ध से सर्वथा मुक्त और जीव का प्रगट अनंत ज्ञान, अनंत सुखादि स्वरूप / 9. मोक्ष जीव सरोवर में नौ तत्त्व - नौ तत्त्व समझने के लिए सरोवर का दृष्टांत है / समझों कि 'जीव' एक सरोवर है, इसमें ज्ञान, सुख आदि का निर्मलपानी है / इस में आश्रव की नीक के द्वारा कर्म-कचरा चला आता है, यह है 'अजीव' (जड) द्रव्य / कर्म कचरा जीव के साथ एकमेक होता हैं, यह 'बन्ध' है / अजीव कर्म-कचरे के दो विभाग है, - 'पुण्य' व 'पाप' / कुछ अच्छे वर्ण-गंध-रसादिवाले कर्म है पुण्य / अशुभवालें है पाप / यों जीव अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, बन्ध; ये छ: तत्त्व हुए /