________________ है, अमेरिका तक का आकाश बडा है / ' यह व्यवहार शून्य को लेकर नहीं हो सकता, क्यों कि शून्य अर्थात् अभाव / अभाव में छोटा बडा क्या? छोटे-बड़े का व्यवहार द्रव्य को लेकर ही हो सकता है / 'छोटा द्रव्य' 'बडा द्रव्य' ऐसा बोल सकते है, किन्तु 'छोटा अभाव (शून्य)', 'बडा अभाव' - ऐसा नहीं बोल सकते / (4) पुद्गलास्तिकाय :- पुद्गलास्तिकाय वह है जिस में विविध वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्श व आकृति हैं / यह चक्षु से स्पष्ट दिखाई पडते हैं, वास्ते वह प्रत्यक्ष-प्रमाण से सिद्ध है / अलबत्त; अणु-परमाणु आदि पुद्गल द्रव्य का चक्षु से प्रत्यक्ष नहीं होता है, फिर भी इनके कार्यरूप प्रत्यक्ष-सिद्ध स्थूल द्रव्य से वे सिद्ध है / पुद्गल द्रव्य का विस्तार आगे बताया जाएगा / (5) कालद्रव्य- यह अत्यंत सूक्ष्म एक समयरूप है / यह द्रव्य स्वरूप होने में प्रमाण यह है कि वह काल ही पुद्गल द्रव्य में नया-पुराना आदि व्यवहार कराता है / अगर कालद्रव्य ही न हो, तो पुद्गल द्रव्य को तो सुबह क्या? या दोपहर क्या? वह तो वही है / फिर इस में सुबह 'नया' और दोपहर में 'पुराना' ऐसा भिन्न भिन्न व्यवहार कैसे हो सकता है? कहना होगा कि- 'सुबह' एवं 'दोपहर' यह कालद्रव्य के ही संयोग का दर्शक है / (6) जीवास्तिकाय :- यह जीवद्रव्य ज्ञान, दर्शन, वीर्य पुरुषार्थ, सुख आदि गुणों से सम्पन्न प्रसिद्ध द्रव्य है / इसका विवेचन पूर्व