________________ में आया है और आगे भी आएगा / ये मूल छ: द्रव्य शाश्वत है, अविनाशी है / अलबत्त; इनकी अवस्थाओं में परिवर्तन होता रहता है / यानी उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य की महासत्ता की अनुभूति करते हुए इन द्रव्यों में जो अवस्था यानी 'पर्याय' का परिवर्तन हुआ करता है, वही विश्व का संचालन है / (8) द्रव्य-गुण-पर्याय विश्व धर्मास्तिकायादि षड् द्रव्यात्मक है और वे द्रव्य मूल रूप में स्वतंत्र हैं, व अनादिकाल से हैं / 'स्वतंत्र' का तात्पर्य- 'एक मूल द्रव्य कभी भी अपर मूल द्रव्यात्मक नहीं होता है' / 'अनादि कालीन' का तात्पर्य-कभी भी वे नये उत्पन्न नहीं हुए हैं / ' अब इस पर प्रश्न होता है कि छः द्रव्यो में पुद्गल एवं जीवद्रव्यो का संचालन (working) केसे चलता है? ___जैन दृष्टि से द्रव्यों का संचालन और कुछ नहीं किन्तु द्रव्यों में गुण-पर्यायों (अवस्थाओं) का परिवर्तन मात्र है / उदाहरणार्थ-हाथी खरगोश की दया कर मरके मेघकुमार नाम श्रेणिकराजा का पुत्र बना / यह उसके आत्मद्रव्य में वैसे हाथी-पन का पर्याय (अवस्था) नष्ट हो मनुष्यपन का पर्याय (अवस्था) की उत्पत्ति हुई /