________________ उ०- (1) धर्मास्तिकाय :- यह जीव और पुद्गल की गति में सहायक द्रव्य हैं और वह लोकव्यापी लोकान्त तक है / इसीलिए जीव और पुद्गल मात्र लोकान्त तक जा सकते हैं; जैसे मछली पानी के तट तक ही जा सकती है, बाहर नहीं / अगर ऐसा धर्मास्तिकाय द्रव्य नहीं होता तो जीव तथा पुद्गल गति करते करते अनंत अलोक में बिखर जाते ! तब विश्व मात्र लोकव्यापी व्यवस्थित रूप में रह सकता नहीं / यही धर्मास्तिकाय द्रव्य के अस्तित्व का प्रमाण है / (2) अधर्मास्तिकाय :- यह लोकव्यापी द्रव्य जीव और पुद्गल को स्थिरता करने में सहायक द्रव्य है / उदाहरणार्थ अशक्त बुढे आदमी को चलते चलते कहीं खडे रहने में कोई दिवार वगेरह का सहारा रहता हैं / (3) आकाशास्तिकाय :- यह और द्रव्यों को अवकाश देनेवाला आधार द्रव्य है / इसके जितने भाग में और द्रव्य रहते हैं, यह भाग 'लोकाकाश' कहा जाता है / यह 14 राजलोक प्रमाण हैं / इससे बाहर के अनंत आकाश को 'अलोकाकाश' कहा जाता है / प्र०- आकाश तो शून्य होता है, यह द्रव्य कैसे? उ०- खाली शून्य अर्थात् असत् (अभाव) यह आधार नहीं बन सकता / आधार तो द्रव्य ही हो सकता है / कहते हैं-'छोटे घर में बडी अलमारी की जगह नहीं है / ' यह 'जगह' ही 'आकाश द्रव्य का इतना भाग' है / 'यहाँ से इंग्लेन्ड तक का आकाश कम SR 480