________________ मतलब, जैनधर्म ही विश्वधर्म है / (7) विश्वः षड्द्रव्य-समूहमयः पंचास्तिकायमय यह विश्व क्या है? विश्व जीव और जड द्रव्यों का समूह है / जड द्रव्यों में (1) धर्मास्तिकाय, (2) अधर्मास्तिकाय, (3) आकाशास्तिकाय, (4) पुद्गलास्तिकाय; ये 4 अस्तिकाय, और (5) कालद्रव्य; ये पांच आते हैं / इन में जीवास्तिकाय मिलाने से षड् द्रव्य होते हैं / प्र०- अस्तिकाय का अर्थ क्या है? उ०- 'अस्ति' = प्रदेश (सूक्ष्मांश) काय = समूह; प्रदेशों का समूह / अर्थात् 'जिस में अति सूक्ष्मांशो का समूह है ऐसा द्रव्य यह अस्तिकाय हैं' / धर्मास्तिकायादि पांच द्रव्यों में सूक्ष्मांश होते हैं, जैसे कि आकाश एक अखंड द्रव्य होने पर भी 'इस के अमुक भाग में सूर्योदय होता है, दूसरे भाग में नहीं', यह 'भाग' का व्यवहार इसके अंश से ही हो सकता है / कालद्रव्य मात्र वर्तमान एक समय रूप होने से इस में अस्तिकाय (यानी प्रदेशों का समूह) नहीं होता है / वास्ते अस्तिकाय पांच है और द्रव्य छ: है / प्र०- धर्मास्तिकाय जैसे द्रव्य होने में प्रमाण क्या है? 478