________________ यह बात भगवान ने अपने केवलज्ञान से देखी है तथा यह भगवान को ध्यान द्वारा अनुभव की हुई है / आजका विज्ञान भी यही बताता है कि प्रत्येक अणु में निहित परमाणु प्रत्येक क्षण में उत्पन्न होते है और नष्ट भी होते है, तो भी वस्तु स्वरूप से वैसी ही दिखती है / जो बाहर से दिखता वह ध्रौव्य है तथा अन्दर से जो उत्पन्न होता है व जो अंतर्मग्न होता है यह उत्पाद, व्यय है / यह स्थिति समस्त विश्व में है / विद्यमान माना जाने वाला आकाश भी एकान्त रूप से मात्र नित्य ही नहीं है, वह अनित्य भी है / जैसे कि आकाश घटाकाश रुप से, परब (प्याऊ) आकाश रूप से अनित्य है / जब प्याऊ की झोंपड़ी बनायी गयी, तब उतने परिमाण का प्याउ- झोंपड़ी आकाश नया उत्पन्न हुआ / जब वह झोंपड़ी टूट गयी वस्तु नहीं, अतः कहा जाता है कि आकाश ही उस रूप में उत्पन्न और नष्ट हुआ / आकाश रूप में वह स्थिर है / विश्व के प्रत्येक पदार्थ में उत्पाद-व्यय- ध्रौव्य की महासत्ता व्याप्त है / सप्तभंगी : वस्तुद्रव्य में अनन्त पर्याय, अनन्त धर्म विद्यमान हैं अतः वस्तु अनन्त पर्यायात्मक, अनंत धर्मात्मक होती है / वे धर्म अमुक-अमुक अपेक्षा से होते हैं, दूसरी अपेक्षा से नहीं होते है / इस अपेक्षा पर 32 33780