________________ उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य : यथार्थ दर्शन तभी होता है जब वस्तु मात्र को सापेक्ष दृष्टि से देखा जाय / क्योंकि वस्तु का सबंध अनेक पदार्थो के साथ संबंध होता है / इसी प्रकार वस्तु में मूल स्वरूप और नवीन-नवीन अवस्थांए अर्थात् द्रव्यत्व और पर्याय ये दो स्थितियां होती हैं / द्रव्य की अपेक्षा से पदार्थ ध्रुव रहता है और पर्याय रूप से उत्पन्न होता है तथा नष्ट नाश को प्राप्त) होता है / वस्त्र पहले धान के रूप में था / अब उसके कोट, कमीज़ आदि ‘कपडे' सिलाए गएँ / वस्त्र वस्त्रद्रव्य के रूप में तो स्थिर रहा, परन्तु धान-पर्याय के रूप में नाश हुआ और कोट-कमीज आदिपर्याय रूप से उत्पन्न हुआ / ___ मनुष्य कर्मचारी-पर्याय के रूप में से हटा और अधिकारी-पर्याय के रूप में प्रगट हुआ / यहां भी वह मनुष्य द्रव्य के रुप में कायम रहा, पर्याय रुप में परिवर्तित हुआ / वस्तु उत्तरोत्तर क्षणों में वस्तु - रुप में तो विद्यमान रही / किन्तु दूसरी क्षण में दूसरी क्षण की वस्तु बनी, इस क्षण की वस्तु नहीं रही / इस तरह पर्याय रुप से वस्तु का उत्पाद और विनाश है, द्रव्य-रूप में उसका ध्रौव्य, स्थैर्य रहता है / यह सामान्य उदाहरण है, वास्तव में प्रत्येक पदार्थ क्षणभंगुर है, 2 3368